Question:

बलीहारी है इस मादक शोभा की। चारों ओर कृश यमराज के दाँतों निःश्वास के समान धधकती लू में भी यह हरा भी है और भरा भी है, दुःख के चिन्तन से भी अधिक करुणा की कारा में रुद्ध अज्ञात जलस्रोत से बरसते रस कीचक सरस बना हुआ है। 
और सूखे के मद्देनज़र से भी अधिक तृप्तिकर और तिक्त निराशा के भाव से भी अधिक पीड़ाहारी। 
कठिन जीवन-शक्ति है। प्राण की जिजीविषा को पुष्टिकर करता है, जीवन-विघ्नों की निवृत्ति का कठिन जीवनाधार है। 
प्राण की आतप को शीतल करता है, टूटते हृदयों को सहारा देता है। 
यह पूर्वतानी हिमालय की हिमाच्छादित चोटियों से, वहीं कहीं भगवती महादेव सगाई लगाए बैठे होंगे; 
नीचे सपाट परतीली ज़मीं पसरी हुई है, किन्तु जहाँ-तहाँ जीवनतंतुश्री सरिताएँ आगे बढ़ने का मार्ग खोज रही होंगी – 
वहीं वह झरना ऊबड़-खाबड़ ज़मीन में – सूखी, नीर, कठोर। 
यहीं आकर आसीन मानकर बैठे हैं मेरे परिचारक दोस्त कुत्ज। 
 

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प्राकृतिक दृश्य सिर्फ सौंदर्य नहीं, बल्कि जीवटता, संघर्ष और प्रेरणा का माध्यम भी होते हैं — यह अंश उसी भाव को उजागर करता है।
Updated On: Jul 21, 2025
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Solution and Explanation

संदर्भ:
यह गद्यांश सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' की यात्रा वृत्तांत शैली की रचना से लिया गया है, जिसमें प्रकृति के सौंदर्य और संघर्षशील जीवन शक्ति का विश्लेषण है।
प्रसंग:
इस अंश में लेखक विषम परिस्थितियों में भी प्रकृति की जीवंतता, सौंदर्य और प्रेरणा देने वाली शक्ति का वर्णन कर रहे हैं।
व्याख्या:
लेखक कहते हैं कि सूखे, गर्म हवाओं, और विनाश के वातावरण में भी एक स्थान है जो हरा-भरा है।
यह केवल बाह्य सौंदर्य नहीं, बल्कि उस प्राकृतिक शक्ति का प्रमाण है जो जीवन के कठिन संघर्षों में भी आशा और ऊर्जा देती है।
यह स्थान हिमालय की हिमाच्छादित चोटियों से जुड़ता हुआ लगता है, जहाँ से शीतलता, जीवन शक्ति और आत्मबल की प्रेरणा मिलती है।
इस स्थान पर उबड़-खाबड़ ज़मीन में भी झरना बह रहा है, जो जीवन के भीतर छिपी संभावनाओं और अनंत ऊर्जा का प्रतीक है।
लेखक यहाँ अपने परिचित ‘कुत्ज’ के साथ बैठे हैं और मानते हैं कि यह स्थल केवल प्रकृति की सुंदरता का नहीं, बल्कि जीवन के संघर्षों में सहारा देने वाली चेतना का स्थान है।
निष्कर्ष:
यह गद्यांश बताता है कि कठिन परिस्थितियों में भी प्रकृति का सौंदर्य और जीवन की इच्छा मनुष्य को नई ऊर्जा से भर देती है।
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