“आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन” पंक्ति में बादलों को ‘अनंत के घन’ इसलिए कहा गया है क्योंकि बादल अत्यंत विशाल, घने और असंख्य होते हैं, जो आकाश के अनंत और अज्ञात विस्तार में फैले हुए प्रतीत होते हैं। इस प्रकार बादलों का विस्तार इतना व्यापक होता है कि वे आकाश के पूरे अनंत को ढक लेते हैं, जिससे ऐसा लगता है कि बादलों के समूह अनंत की भांति अनमोल और असीम हैं।
यहां ‘अनंत के घन’ शब्द से यह दर्शाया गया है कि बादल केवल आकाश में सामान्य बादल नहीं हैं, बल्कि वे विशाल समूहों में इतने घने और गाढ़े होते हैं कि उनका सघनपन अनंत आकाश की विशालता के अनुरूप प्रतीत होता है। बादलों का यह विशाल और रहस्यमय स्वरूप हमें प्रकृति की अपार क्षमता और उसकी अनंतता का एहसास कराता है।
इस पंक्ति में बादलों की इस विशालता और उनकी अनजान दिशा से आने वाली गति का चित्रण है, जो हमें प्रकृति के अनन्त और अप्रत्याशित रहस्यों की ओर इंगित करता है। बादलों को ‘अनंत के घन’ कहकर कवि ने उनके विस्तार, गहनता और अनंत आकाश में उनकी व्यापक उपस्थिति को बड़े ही प्रभावशाली ढंग से व्यक्त किया है।
संक्षेप में, बादलों को ‘अनंत के घन’ इसलिए कहा गया है क्योंकि वे असंख्य, घने और आकाश के असीम विस्तार के प्रतीक हैं, जो हमें प्रकृति की अनंतता और विशालता का अनुभव कराते हैं।