निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर उस पर आधारित दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
वृद्धाएँ धरती का नमक हैं,
किसी ने कहा था!
जो घर में हो कोई वृद्धा –
खाना ज्यादा अच्छा पकता है,
परदे-पेटिकोट और पायजामे भी दर्जी और
फ़ूफ़ाओं के
मुहताज नहीं रहते,
सजा-धजा रहता है घर का हर कमरा,
बच्चे ज़्यादा अच्छा पलते हैं,
उनकी नन्हीं-मुन्नी उल्टियाँ सँभालती
जगती हैं वे रात-भर,
घुल जाती हैं बच्चों के सपनों में
हिमालय-विमालय की अटल कंदराओं की
दिव्यवर्णी-दिव्यगंधी जड़ी-बूटियाँ और
फूल-वूल!
उनके ही संग-साथ से भाषा में बच्चों की
आ जाती है एक अनजव कोंपल
मुहावरों, मिथकों, लोकोक्तियों,
लोकगीतों, लोकगाथाओं और कथा-समयों की।
उनके ही दम से
अतल कूप खुद जाते हैं बच्चों के मन में
आदिम स्मृतियों के।
रहती हैं बुढ़ुआँ, घर में रहती हैं
लेकिन ऐसे जैसे अपने होने की खातिर हों
क्षमाप्रार्थी
– लोगों के आते ही बैठक से उठ जातीं,
छुप-छुपकर रहती हैं छाया-सी, माया-सी!
पति-पत्नी जब भी लड़ते हैं उनको लेकर
कि तुम्हारी माँ ने दिया क्या, किया क्या–
कुछ देर वे करती हैं अनसुना,
कोशिश करती हैं कुछ पढ़ने की,
बाद में टहलने लगती हैं,
और सोचती हैं बेचैनी से – ‘गाँव गए बहुत दिन हुए!’
उनके बस यह सोचने-भर से
जादू से घर में सब हो जाता है ठीक-ठाक,
सब कहते हैं, ‘अरे, अभी कहाँ जाओगी,
अभी तो नहीं जाना है बाहर, बच्चों को रखेगा
कौन?’
कपड़ों की छाती जब फटती है –
खुल जाती है उनकी उपयोगिता।