उक्त गद्यांश के आधार पर प्रश्नों के उत्तर चुनें।
रात्रौ दशवादने सर्कसक्रीडायाः प्रारम्भः जातः। द्वादशवादने क्रीडायाः चरमबिन्दुः समायातः। सहभोजनम्। प्रेक्षकाणाम् उत्कण्ठायाः पराकाष्ठा जाता। सेवकः मध्ये त्रीणि आसनानि स्थापितवान्, मध्यभागे च वर्तुलाकारं पीठम्। अहम् एकस्मिन् आसने उपाविशम्। अङ्गरान्ते भल्लुकवेषधारी अब्दुलः तत्र प्राप्तः। गङ्गी अपि मञ्चं समागता। ततः अस्माकं पुरतः खाद्यस्य योजना कृता।
सहभोजने आरम्भे जाते, उत्तेजितः प्रेक्षकः आनन्देन तालिकावादनम् आरब्धवान्। पूर्वमपि व्याघ्रभल्लुकौ मानुषी एवं, तथापि सा धेनुः ताभ्यां सह कार्यक्रमं कर्तुं अभ्यस्ता आसीत्। अचिरात् एव, न इयं परिचिता — व्याघ्रभल्लुकौ इति धेन्वा लक्षितम्। सम्भ्रमेण संशयेन च एकैकशः आर्यां दृष्टवती। यदा च तस्याः प्रत्ययः जातः, तदा क्षुब्धं उद्यमं — न आक्रमणम्।
अहमपि गर्जनं कृत्वा तीक्ष्णदन्तान् दंशितवान्। किन्तु न किञ्चिदपि भयम् तस्याः। अब्दुलः तं हस्तेन ताडितवान्। तेन शुब्धा सा तम् अनवधातवान्। भल्लुकः तदा चापेन पटमण्डपम् आरुहवान्। इयं कृता क्रीडा, सा धेनुः अधुना व्याघ्रं माम् लक्ष्यं कृतवती। भीत्या अहम् चतुष्पादविविष्टं व्याघ्रत्वं विस्मृत्य द्विपादं मूलस्वरूपम् आश्रितवान्।
\[\begin{array}{|c|c|} \hline \textbf{विकल्प} & \textbf{उत्तर} \\ \hline \text{(1) ...} & \text{दरशवादने श्रेणियाँ: प्रारंभ: जात:} \\ \hline \text{(2) पूर्वंपी व्यासफलेषु} & \text{मणि छीनं आस्तां स्थायिनं} \\ \hline \end{array}\]
Step 1: Understanding the Passage.
गद्यांश में राजे रत्नादेः की कार्यशैली और उनके द्वारा दी गई सुविधाओं के बारे में बताया गया है। यह एक संकेत देता है कि व्यक्ति अपनी परिस्थिति को किस प्रकार समझते हैं और उससे कैसे निपटते हैं।
Step 2: Analyzing the Options.
(1) ...: यह सही उत्तर है क्योंकि यह गद्यांश के प्रमुख बिंदु को दर्शाता है।
(2) पूर्वंपी व्यासफलेषु: यह विकल्प गलत है, क्योंकि यह गद्यांश में उल्लिखित घटनाओं से मेल नहीं खाता।
Step 3: Conclusion.
सही उत्तर है (1) ..., क्योंकि यह गद्यांश के संदर्भ में सही है।
कदा क्रीडायाः चरमबिन्दुः समायातः?
द्वादशवादने
Explanation: क्रीडायाः चरमबिन्दुः, यः क्रीडायाः सर्वोत्कर्षः वा अधिकतमं स्थानं दर्शयति, द्वादशवादने समायातः।
भल्लुकवेषधारी कः आसीत्?
सहभोजनम् आरम्भे जाते प्रेक्षकः किम् आरब्धम्?
धातुसाधित-ल्यबन्त-अव्यये चित्वा लिखत।
निम्नलिखित द्वे शब्दे यथा चयनिताः स्युः —
1. धातुसाधितः शब्दः (उदाहरणार्थ): गच्छति (from root गम्)
2. अव्ययः (उदाहरणार्थ): न, अपि, च
ततः एतानि स्पष्टतया लिखनीयानि।
Explanation:
धातुसाधित शब्दाः ते सन्ति याः क्रियामूलाधारात् (धातुभ्यः) निर्मिताः स्युः। ल्यप् प्रत्यययुक्त शब्दाः तु धातुना विशेषप्रकारेण प्रत्यययुक्ताः शब्दाः सन्ति। अव्ययाः न च विभिन्नाः अविभक्ताः शब्दाः, यः अर्थसामग्रीं सम्यक् प्रददाति।
सन्धिविग्रहं कुरुत।
किञ्चिदपि = ..................... + ....................
गद्यांशात् विशेषणं चित्वा लिखत।
1. ..................... पीठम्।
2. ..................... क्रीडा।
पृथक्करणम्
।क्रमेण योजयत ।
जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण उपकरण है। यह जीवन के कठिन समय में चुनौतियों का सामना करने का मार्ग प्रशस्त करती है। शिक्षा-प्राप्ति के दौरान प्राप्त किया गया ज्ञान व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाता है। शिक्षा जीवन में बेहतर संभावनाओं को प्राप्त करने के अवसर के लिए प्रेरित बनाती है। व्यक्ति के जीवन को बढ़ाने के लिए सरकारें कई बहुत से योजनाओं और अवसरों का संचालन करती रही हैं।
शिक्षा मनुष्य को समाज में समानता का अधिकार दिलाने का माध्यम है। जीवन के विकास की ओर बढ़ा देती है। आज के वैज्ञानिक एवं तकनीकी युग में शिक्षा का महत्व और भी बढ़ गया है। यह व्यक्ति को जीवन में बहुत सारी सुविधाएँ प्राप्त करने का मार्ग प्रदान करती है। शिक्षा का उद्देश्य अब केवल रोजगार प्राप्त करना ही नहीं, बल्कि व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास के लिए भी आवश्यक है।
आज का विद्यार्थी शिक्षा के माध्यम से समाज को जोड़ने की कड़ी बन सकता है। शिक्षा व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाती है, व्यक्ति को समय के साथ चलने और आगे बढ़ने में मदद करती है। यह व्यक्ति को अनुशासन, परिश्रम, धैर्य और शिक्षा जैसे मूल्य सिखाती है। शिक्षा व्यक्ति को समाज के लिए उपयोगी बनाती है और जीवन में अनेक छोटे-बड़े कार्यों में विभिन्न कौशलों को विकसित करती है। यही कारण है कि आज प्रत्येक व्यक्ति शिक्षा प्राप्त करना चाहता है और समाज में दृढ़ता प्राप्त कर सही मार्ग पर खड़ा हो सकता है।
बार-बार आती है मुखाकृति मधुर, याद बचपन तेरी।
गया ले गया तू जीवन की सबसे मधुर खुशी मेरी।
चिंता रहित खेलना-खाना वह फिरना निर्बंध स्वच्छंद।
कैसे भुला जा सकता है बचपन का अद्भुत आनंद।
ऊँच-नीच का ज्ञान नहीं था, छुआ-छूत किसे कहते?
बनी हुई थी वहीं झोपड़ी और सीपियों से नावें।
रोना और मचल जाना भी क्या आनंद दिखाते थे।
बड़े-बड़े मोती सी आँसू, चुपचाप बहा जाते थे।
वह सुख जो साधारण जीवन छोड़कर महत्वाकांक्षाएँ बड़ी हुईं।
टूट गईं कुछ खो गईं हुई-सी दौड़-धूप घर खड़ी हुईं।
नाटक की तरह एकांकी में चरित्र अधिक नहीं होते। यहाँ प्रायः एक या अधिक चरित्र नहीं होते। चरित्रों में भी केवल नायक की प्रधानता रहती है, अन्य चरित्र उसके व्यक्तित्व का प्रसार करते हैं। यही एकांकी की विशेषता है कि नायक सर्वत्र प्रमुखता पाता है। एकांकी में घटनाएँ भी कम होती हैं, क्योंकि सीमित समय में घटनाओं को स्थान देना पड़ता है। हास्य, व्यंग्य और बिंब का काम अक्सर चरित्रों और नायक के माध्यम से होता है। एकांकी का नायक प्रभावशाली होना चाहिए, ताकि पाठक या दर्शक पर गहरा छाप छोड़ सके।
इसके अलावा, घटनाओं के उद्भव-पतन और संघर्ष की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि नायक ही संपूर्णता में कथा का वाहक होता है। यही कारण है कि नाटकों की तरह इसमें अनेक पात्रों का कोई बड़ा-छोटा संघर्ष नहीं होता। नायक के लिए सर्वगुणसंपन्न होना भी आवश्यक नहीं होता। वह साधारण जीवन जीता हुआ व्यक्ति भी हो सकता है।
इस गद्यांश से यह स्पष्ट होता है कि एकांकी में चरित्रों की संख्या सीमित होती है, नायक अधिक प्रभावशाली होता है और बाहरी संघर्ष बहुत कम दिखाया जाता है।
जवाहरलालनेहरूशास्त्री कञ्चन करणीनामकशिल्पिनः आसीत । मियालगोटेर्यालेयां स्थितः सः आरक्षका: मातृका: हत आसीत: आसीत तद्विषये । सः विज्ञानानन्दसदनं नीत्वा तत्र कार्स्यमं पृष्ट्वा गुरुकुलं अध्यायान्वितं स्म । गार्हस्थ्यं यः सहाय्यं कुर्वीत तस्मै योगः: पुरस्कारः दायते हि सर्वकारणं धार्मिकत्व आसीत ।
कविलासः जवाहरलालनेहरूशास्त्री तेह्रुआं स्फूर्तं परं स्थितः । एष्याणाकारे विद्यायामं सः राजपुरमार्ग स्थितः कञ्चन आराधनं स्मरति स्म । आश्चर्यकरः साधुः इदम्नातरणं एव जवाहरलालनेहरूयं अभिनवावदानम् । अतः सः पुरस्कारतः आख्यापक अध्यम्यः ।
आख्यापकः : आगत्य शान्तिनगरं आरक्षकालं अन्यत्र । शान्तिनगरं: तु अन्यनामं धैर्येण स्थियते न पुरातनं ।
आख्यापकाध्यापकः : नागानिके विद्यालये त्रिविधानां यूनिफार्म परिधानानाम् आज्ञापितवान् । कश्चन छात्रकः शान्तिनगरं : यूनिफार्म परिधानं न आचरत् । एष्यं वस्त्रं यूनिफार्म यत्रात बहिः : स्थातुम् । द्वितीयमिति वहिः : स्थातुम् । तृतीयं वस्त्रं यूनिफार्म यत्रात यत्र बहिः : स्थातुम् ततः तस्मात् अज्ञालिप्ताधिकारि रुष्टगणकानि भूमौ अपतन्त।
“भोः, एषानी नामानि कुतः परिधानं भवता ?” – अनुच्छत्रः आख्यापकाध्यापकः ।
“अहं गण्डकोरीं छत्रकः अस्मि । तत् एव अन्यमानं करणीयं हि उत्कट बन्धुमित्राय निबन्धः । स्तन् धनम् एतत्” इति अवदत् जनोश्चन्द्रशास्त्री ।