चरण 1: सूत्रार्थ।
'तर्कपूर्वकम् अनुमानम्' का आशय है—अनुमान से पूर्व तर्क (विकल्पों के परिणामों का परीक्षण) द्वारा विरोधी सम्भावनाओं का खण्डन कर व्याप्ति/लक्षण को दृढ़ करना। यह न्याय-दर्शन की विशिष्ट पद्धति है।
चरण 2: न्याय में तर्क की भूमिका।
न्यायसूत्र-परम्परा में तर्क को संशय-निवारक सहायक साधन कहा गया—"यदि ऐसा हो तो अनिष्ट प्रतिफल" प्रकार के विचार से अनुमान के हेतु को पुष्ट किया जाता है। पाँच-अवयवी पारार्थानुमान (प्रतिज्ञा–हेतु–उदाहरण–उपनय–निगमन) के पहले तर्क अक्सर प्रयुक्त होता है ताकि प्रतिपक्ष के विकल्प निरस्त हो जाएँ।
चरण 3: अन्य मतों से भेद।
सांख्य केवल तीन प्रमाण (प्रत्यक्ष, अनुमान, शब्द) मानता है—पर तर्कपूर्वक की यह विशेष रेखांकन नहीं करता। बौद्ध तर्कशास्त्र (दिङ्नाग, धर्मकीर्ति) 'त्रिरूप-हेतु' पर बल देता है; जैन में 'नय/स्याद्वाद' प्रमुख है। इसलिए यह उक्ति न्याय-दर्शन से सम्बद्ध मानी जाती है।