सिक्की शिल्प एक पारंपरिक कला रूप है, जिसमें मुख्य रूप से घास का उपयोग किया जाता है। यह शिल्प विशेष रूप से भारत के कुछ क्षेत्रों में प्रचलित है, जहां परंपरागत रूप से घास के तनों को काटकर और उनकी विशेष तकनीक से पिरोकर विभिन्न प्रकार के डिज़ाइन्स बनाए जाते हैं। सिक्की शिल्प का मुख्य उद्देश्य सुंदर और उपयोगी वस्त्रों का निर्माण करना है, जो न केवल घरेलू उपयोग के लिए होते हैं, बल्कि सजावट के रूप में भी उपयोग किए जाते हैं।
इस शिल्प में घास की स्टेम्स को व्यवस्थित करके विभिन्न प्रकार के बर्तन, टोकरियाँ, और अन्य घरेलू वस्त्र तैयार किए जाते हैं। इन वस्त्रों की बनावट बहुत सशक्त और लचीली होती है, जो इन्हें लंबे समय तक उपयोगी बनाती है। सिक्की शिल्प से बनाए गए बर्तन और टोकरियाँ आमतौर पर हल्के, मजबूत और पर्यावरण के अनुकूल होते हैं।
इस शिल्प में अन्य सामग्रियों जैसे कपड़े, जूट, या धागे का उपयोग सामान्यतः नहीं किया जाता। हालांकि, कुछ आधुनिक शिल्पकारों ने पारंपरिक सिक्की शिल्प में नए तत्वों को जोड़ने की कोशिश की है, लेकिन पारंपरिक तरीके से सिर्फ घास का ही उपयोग किया जाता है। इस शिल्प का अभ्यास करने वाले कारीगरों द्वारा विकसित की गई बारीक तकनीक और उनके कौशल के कारण, सिक्की शिल्प आज भी बहुत सम्मानित और प्रचलित है, और यह पारंपरिक कला रूपों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।