Question:

‘श्रम विभाजन और जाति-प्रथा’ पाठ के आधार पर ‘लोकतंत्र’ का आशय स्पष्ट कीजिए।

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लोकतंत्र को केवल राजनीतिक व्यवस्था नहीं, सामाजिक समानता के रूप में भी समझें।
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Solution and Explanation

‘श्रम विभाजन और जाति-प्रथा’ पाठ में डॉ. भीमराव अंबेडकर ने लोकतंत्र की सच्ची आत्मा को समझाया है। वे मानते हैं कि केवल राजनीतिक स्वतंत्रता और मतदान का अधिकार ही लोकतंत्र नहीं है, बल्कि समाज में समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व का व्यवहारिक रूप ही लोकतंत्र है।
जाति-प्रथा के कारण समाज में लोगों को व्यवसाय बदलने की स्वतंत्रता नहीं थी। यह परंपरा व्यक्ति को जन्म के आधार पर एक विशेष कार्य करने के लिए बाध्य करती थी। अंबेडकर मानते हैं कि यह व्यवस्था लोकतांत्रिक मूल्यों के विरुद्ध है क्योंकि यह व्यक्ति की स्वतंत्रता और समान अवसरों को बाधित करती है।
लोकतंत्र का आशय यह है कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह किसी भी जाति, धर्म या वर्ग का हो — उसे बराबरी का दर्जा मिले, उसे अपने जीवन और पेशे का चुनाव करने की स्वतंत्रता हो।
अतः जाति-आधारित श्रम विभाजन लोकतंत्र की मूल भावना — अर्थात स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व — का उल्लंघन करता है।
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