चरण 1: 'सत्ता-त्रयी' को याद करें।
अद्वैत वेदान्त (शंकर) में तीन स्तर की सत्ताएँ मानी जाती हैं—पारमार्थिक (ब्रह्म का अखण्ड, निर्विशेष, निरुपाधिक सत्य), व्यवहारिक (जगत्/ईश्वर—उपाधि सहित, व्यवहार में मान्य), और प्रातिभासिक (स्वप्न/भ्रम आदि)।
चरण 2: पारमार्थिक सत्य क्या है?
परमार्थ में केवल ब्रह्म ही सत्यम्–ज्ञानम्–अनन्तम् रूप से सत्य है—न उसमें कोई गुण-विशेष, न परिवर्तन; वही शुद्ध चैतन्य है। ज्ञान द्वारा अविद्या-क्षय होने पर यही स्वस्वरूप प्रत्यक्ष होता है।
चरण 3: अन्य विकल्प क्यों नहीं?
जगत्—नाम–रूप-आश्रित मिथ्या (व्यवहारिक) सत्ता है; ब्रह्म से भिन्न नहीं, पर स्वतंत्र परमार्थ नहीं।
ईश्वर—माया-उपहित सगुण ब्रह्म है; विश्व-नियन्ता रूप में व्यवहारिक स्तर पर सत्य, पर परमार्थ में ब्रह्म से भिन्न नहीं।
अतः पारमार्थिक सत्ता केवल ब्रह्म है—इसलिए विकल्प (1) सही।