चरण 1: प्रतिपादक और मूल ग्रन्थ।
रामानुजाचार्य श्रीवैष्णव परम्परा के आचार्य हैं। उन्होंने वेदान्तसूत्र पर श्रीभाष्य लिखकर विशिष्टाद्वैत का तत्त्व-विवरण स्थापित किया।
चरण 2: सिद्धान्त का सार।
विशिष्टाद्वैत में परम वास्तविकता सगुण ब्रह्म/नारायण है—जो चेतन (चित्/जीव) और अचेतन (अचित्/जगत) को अपने विशेष/अंग के रूप में समाहित करता है। ब्रह्म एक है, पर विशेषणों से विशिष्ट है; जीव-जगत ब्रह्म से अव्यभिच्छिन्न हैं—इसे शरीर–शरीरी-भाव से समझाया जाता है (ब्रह्म = शरीरी, जगत-जीव = शरीर)। मोक्ष का साधन भक्ति/प्रपत्ति है—अनुग्रह से भगवान की प्राप्ति।
चरण 3: विकल्पों का उन्मूलन।
(1) अद्वैत का प्रतिपादन शंकर ने किया—निर्विशेष ब्रह्म, जगत मिथ्या।
(3) द्वैत का प्रतिपादन माध्व ने—जीव और ब्रह्म में नित्य भेद।
(4) भेदाभेद के रूप विभिन्न आचार्यों (जैसे भास्कर का भेदाभेद, निंबार्क का द्वैताद्वैत) से जुड़े हैं, रामानुज से नहीं। अतः सही उत्तर विशिष्टाद्वैत।