Question:

शंकर के अनुसार निर्विशेषतः चेतन सत्ता कौन है?
 

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अद्वैत-सूत्र: ब्रह्म = निरुपाधिक शुद्ध चैतन्य; ईश्वर = सगुण ब्रह्म (माया), जीव = अविद्या-उपहित, जगत् = नाम–रूप (व्यवहारिक)
  • ब्रह्म
  • ईश्वर
  • जीवात्मा
  • जगत्
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The Correct Option is A

Solution and Explanation

चरण 1: अद्वैत की मूल प्रतिज्ञा।
आदि शंकराचार्य के अद्वैत वेदान्त में अंतिम सत्य ब्रह्म है—सत्–चित्–आनन्द स्वरूप, निरुपाधिक, निर्गुण/निर्विशेष और स्वत:सिद्ध। यह शुद्ध चेतना है, किसी विशेषता/उपाधि पर निर्भर नहीं।
चरण 2: अन्य पदों का स्थान।
ईश्वर = सगुण ब्रह्म (माया-उपाधि सहित, विश्व-नियन्ता)—अतः विशेष/उपाधि-युक्त
जीव = अविद्या-उपहित चैतन्य—ब्रह्म का प्रतिबिम्ब, देह–मन से अपने को सीमित मानने से व्यक्तित्ता बनती है।
जगत् = व्यवहारिक/मिथ्या सत्ता—ब्रह्म पर नाम–रूप का आभास मात्र; परमार्थतः स्वतंत्र चेतना नहीं।
चरण 3: निष्कर्ष/उन्मूलन।
प्रश्न में "निर्विशेषतः चेतन सत्ता" (attribute-less pure consciousness) पूछा है। यह न ईश्वर (क्योंकि सगुण/माया-उपाधि), न जीव (अविद्या-उपाधि), न जगत् (मिथ्या/अचेतन-आश्रित), बल्कि केवल ब्रह्म ही है। अतः सही उत्तर (1) ब्रह्म
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