शंकर के अनुसार ब्रह्म के स्वरूप की विवेचना करें।
Step 1: उपनिषद-आधार.
"सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्म", "तत्त्वमसि", "अहं ब्रह्मास्मि"—इन महावाक्यों से ब्रह्म का निरपेक्ष, अनन्त, चैतन्यमय स्वरूप निर्दिष्ट है।
Step 2: माया और जगत.
माया अनादि अविद्या-शक्ति—न नित्य-सत्य, न सर्वथा असत्; इससे नाम–रूप की विविधता प्रतीत होती है। इसी से ईश्वर/जीव/जगत का व्यावहारिक क्रम खड़ा होता है।
Step 3: ज्ञान-मार्ग.
शास्त्र-समर्थित तर्क से देह-मन-इन्द्रिय-'मैं' की असंगता जानी जाती है; निदिध्यासन से अक्षर-स्वरूप में स्थिति।
Step 4: निष्कर्ष.
शंकर का ब्रह्म निर्विशेष चैतन्य है; अद्वैत अनुभव-समर्थित तत्त्व है जिसमें द्वैत अविद्या-जन्य प्रत्यास है, ज्ञान से जिसका लय होता है।
अद्वैत वेदान्त के अनुसार 'जगत' की सत्ता क्या है?
निम्न में से कौन-सी वेदान्त की शाखा नहीं है?
शंकर के अनुसार निर्विशेषतः चेतन सत्ता कौन है?
शंकर के दर्शन के अनुसार पारमार्थिक सत्ता क्या है ?
रामानुजाचार्य ने किस दर्शन को प्रतिपादित किया है ?