Question:

शंकर का दर्शन अद्वैतवाद क्यों कहा जाता है?
 

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की-वाक्य: "ब्रह्म एक, द्वैत अविद्या-जन्य"—इसे लिखते ही 'अद्वैतवाद क्यों' का उत्तर तैयार।
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Solution and Explanation

Step 1: मूल प्रतिज्ञा.
ब्रह्म सत्यम्, जगन्मिथ्या, जीवो ब्रह्मैव—यह त्रिपदी शंकर के अद्वैत का सार है; ब्रह्म निर्गुण, निराकार, अखण्ड।

Step 2: मायावाद.
माया अनादि शक्ति है जो नाम–रूप आरोप से भेद/विविधता दिखाती है; ज्ञान से आवरण हटते ही अद्वैत सत्य प्रकट।

Step 3: साधन-क्रम.
श्रवण–मनन–निदिध्यासन; शास्त्र-समर्थन (उपनिषद् महावाक्य), युक्ति और ध्यानानुभव से अभेद-बोध दृढ़।

Step 4: विरोधों का समाधान.
व्यवहारिक जगत का निषेध नहीं, पर उसका अन्तिम सत्य-स्तर घटाया गया; यही अद्वैत की दार्शनिक सूक्ष्मता है।

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