Question:

रात्रि की विभीषिका कैसी थी ? ढोलक किस रूप में उसे चुनौती देती थी ? ‘पहलेवान की ढोलक’ पाठ के आधार पर लिखिए।

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ढोलक को आशा, साहस और सामूहिक चेतना का प्रतीक समझें।
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Solution and Explanation

‘पहलेवान की ढोलक’ पाठ में जिस रात्रि की विभीषिका का वर्णन है वह महामारी से त्रस्त गाँव की भयावह स्थिति को दर्शाती है। लोग दुख, शोक और असहायता से भर गए थे। चारों ओर मृत्यु का साया था, जीवन की आशा क्षीण हो चुकी थी। इस रात्रि में न केवल भौतिक अंधकार था, बल्कि मनों में निराशा और भय का अंधेरा भी व्याप्त था।
इसी परिस्थिति में पहलेवान की ढोलक आशा की ध्वनि बनकर गूँजती है। वह न केवल शारीरिक रूप से लोगों को एकत्र करती है, बल्कि मानसिक रूप से उन्हें संबल भी देती है। ढोलक की थाप भय और शोक को चुनौती देती है। यह थाप जैसे कहती है – “हम जीवित हैं, हम लड़ेंगे।” ढोलक कला, साहस और जिजीविषा की प्रतीक बन जाती है।
ढोलक का प्रयोग यहाँ केवल एक वाद्य नहीं, बल्कि एक आंदोलन है – जो लोगों में संघर्ष, साहस और जीवन की आशा जगाता है।
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