Comprehension

राष्ट्र का तीसरा अंग जन की संस्कृति है । मनुष्य ने युगों-युगों में जिस सभ्यता का निर्माण किया है, वही उसके जीवन की श्वास-प्रश्वास है । बिना संस्कृति के जन की कल्पना कबंधमात्र है, संस्कृति ही जन का मस्तिष्क है । संस्कृति के विकास और अभ्युदय के द्वारा ही राष्ट्र की वृद्धि संभव है । राष्ट्र के समग्र रूप में भूमि और जन के साथ-साथ जन की संस्कृति का महत्त्वपूर्ण स्थान है ।

Question: 1

प्रस्तुत गद्यांश के पाठ और लेखक का नाम लिखिए।

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किसी भी समाज और राष्ट्र की पहचान उसकी संस्कृति से होती है, जो उसके मूल्य, मान्यताएँ और परंपराओं का प्रतिनिधित्व करती है।
Updated On: Nov 11, 2025
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प्रस्तुत गद्यांश का पाठ 'जन की संस्कृति' है, जिसे भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने लिखा है। यह गद्यांश राष्ट्र के सांस्कृतिक महत्त्व को दर्शाता है और इसे राष्ट्र के मानसिक विकास की नींव के रूप में प्रस्तुत करता है। लेखक ने इस गद्यांश में यह बताया है कि बिना संस्कृति के राष्ट्र का अस्तित्व अधूरा है।
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Question: 2

रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

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संस्कृति को समाज की आत्मा माना जाता है, क्योंकि यह समाज के प्रत्येक व्यक्ति के सोचने और कार्य करने के तरीके को प्रभावित करती है।
Updated On: Nov 11, 2025
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Solution and Explanation

'संस्कृति ही जन का मस्तिष्क है' इस वाक्य का अर्थ है कि संस्कृति जन के विचारों, आस्थाओं और जीवनदृष्टि को निर्धारित करती है। यह राष्ट्र के व्यक्तित्व और मानसिकता को आकार देती है, जैसे मस्तिष्क शरीर के सभी अंगों को नियंत्रित करता है। संस्कृति बिना राष्ट्र का विकास असंभव है क्योंकि यह जन की सोच और कार्यों को दिशा देती है।
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Question: 3

राष्ट्र का तीसरा अंग क्या है?

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राष्ट्र का विकास केवल भौतिक संसाधनों पर निर्भर नहीं है, बल्कि उसकी संस्कृति और मानसिकता पर भी गहरा असर डालता है।
Updated On: Nov 11, 2025
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राष्ट्र का तीसरा अंग 'जन की संस्कृति' है। संस्कृति, भूमि और जन के साथ राष्ट्र के विकास में एक अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। राष्ट्र की पूरी शक्ति और उसकी सफलता संस्कृति के सही रूप में स्थापित होने पर निर्भर करती है। यह राष्ट्र की सामाजिक, सांस्कृतिक, और मानसिक धारा को प्रभावित करती है।
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Question: 4

मनुष्य के जीवन की श्वास-प्रश्वास क्या है?

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संस्कृति न केवल बाहरी क्रियाओं का निर्धारण करती है, बल्कि यह मानसिक, आत्मिक और सामाजिक जीवन को भी मार्गदर्शन देती है।
Updated On: Nov 11, 2025
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'मनुष्य के जीवन की श्वास-प्रश्वास' से अभिप्राय है संस्कृति, क्योंकि जीवन को संरचित और दिशा देने का कार्य संस्कृति करती है। यह जीवन की प्रेरक शक्ति है, जो एक व्यक्ति के आस्थाओं, विचारों, और दृष्टिकोण को प्रभावित करती है। संस्कृति ही मनुष्य को अपने जीवन के उद्देश्य और आस्थाओं का बोध कराती है, जैसे श्वास-प्रश्वास से शरीर की गतिविधि चलती है, वैसे ही संस्कृति से जीवन के विचार और कर्म चलित होते हैं।
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Question: 5

राष्ट्र की वृद्धि कैसे संभव है?

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संस्कृति का विकास समाज के प्रत्येक स्तर पर प्रभाव डालता है, और यह राष्ट्र की प्रगति के लिए आवश्यक है।
Updated On: Nov 11, 2025
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राष्ट्र की वृद्धि 'संस्कृति के विकास और अभ्युदय' के द्वारा संभव है। जब संस्कृति का निरंतर विकास होता है, तो राष्ट्र के प्रत्येक अंग की वृद्धि होती है, जो राष्ट्र की समृद्धि और शक्ति का कारण बनता है। यह सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक स्थिरता प्रदान करता है। राष्ट्र का वास्तविक शक्ति और विकास केवल जब उसकी संस्कृति में समृद्धि होती है, तभी वह उन्नति की ओर अग्रसर हो सकता है।
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