Question:

रेडियो नाटक में पात्रों की संख्या सीमित रखने का बंधन क्यों है ? 
 

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श्रव्य माध्यम में ‘क्लैरिटी’ ही सबसे बड़ा सौंदर्य होता है — पात्र जितने कम, संप्रेषण उतना सटीक।
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Solution and Explanation

रेडियो नाटक पूर्णतः श्रव्य माध्यम है जिसमें दृश्य संकेत उपलब्ध नहीं होते। दर्शक पात्रों को उनके वस्त्र, हाव-भाव, रंग-रूप आदि से नहीं पहचान सकता।
इसलिए प्रत्येक पात्र को उसकी आवाज़ और संवाद शैली से ही पहचाना जाता है। यदि पात्र अधिक होंगे तो श्रोता के लिए यह समझना कठिन हो जाएगा कि कौन संवाद बोल रहा है।
इससे नाटक की समझ बाधित होती है और कहानी में भ्रम उत्पन्न हो सकता है।
इसके अतिरिक्त, सीमित पात्रों से ही एक सशक्त नाट्य संरचना तैयार की जा सकती है, जिसमें प्रत्येक पात्र को पर्याप्त संवाद, गहराई और भूमिका दी जा सके।
इसलिए रेडियो नाटकों में पात्रों की संख्या सीमित रखना तकनीकी, कलात्मक और संप्रेषण की दृष्टि से आवश्यक है।
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