Step 1: Understanding the Question
दी गई काव्य पंक्तियों में निहित रस को पहचानना है।
Step 2: Key Concept
हास्य रस का स्थायी भाव 'हास' होता है। जब किसी व्यक्ति की विकृत वेश-भूषा, वाणी, चेष्टाओं आदि को देखकर या सुनकर हृदय में हास का भाव उत्पन्न होता है, तो वहाँ हास्य रस की निष्पत्ति होती है।
Step 3: Detailed Explanation
ये पंक्तियाँ रामचरितमानस के उस प्रसंग से हैं जब नारद मुनि विश्वमोहिनी से विवाह करने के लिए उत्सुक हैं और बार-बार बेचैन होकर उचक रहे हैं। उनकी इस हास्यास्पद दशा को देखकर शिव के गण (हर-गन) मुस्कुरा रहे हैं ('मुसकाहीं')। यहाँ नारद मुनि की चेष्टाएँ आलंबन हैं, उनका उचकना-अकुलाना उद्दीपन है, और शिवगणों का मुस्कुराना अनुभाव है। इन सबसे 'हास' नामक स्थायी भाव पुष्ट होकर हास्य रस में परिणत हो रहा है।
Step 4: Final Answer
अतः, इन पंक्तियों में हास्य रस है। सही उत्तर (B) है।