चरण 1: अर्थ-निर्धारण।
प्रागनुभविक (a priori) वह ज्ञान है जो अनुभव पर निर्भर नहीं होता, बल्कि बुद्धि/मन की जन्मजात संरचनाओं से प्राप्त होता। यह सार्वभौमिक और आवश्यक होता है—जैसे गणितीय सत्य, तर्क के नियम, कारणता जैसी श्रेणी की अनिवार्यता।
चरण 2: कान्ट का संकेत।
कान्ट बताता है कि ज्ञान में अनुभव सामग्री देता है पर a priori रूप (स्थान, काल) और बुद्धि की श्रेणियाँ उसे रूपायित करती हैं। इस अर्थ में प्रागनुभविक का हेतु बुद्धि/मन की पूर्व-स्थित शक्तियाँ हैं, न कि इन्द्रिय-अनुभव।
चरण 3: विकल्प-उन्मूलन।
(2) अनुभव a posteriori का आधार है;
(3) दोनों कहना ठीक नहीं, क्योंकि प्रागनुभविक की परिभाषा ही अनुभव-स्वतंत्रता है;
अतः सही उत्तर बुद्धि से।