Question:

परसेवा का आनंद — 120 शब्दों में रचनात्मक लेख लिखिए:

Show Hint

‘परसेवा’ के उदाहरणों को केवल दान या मदद तक सीमित न रखें — इसे भावनात्मक, सांस्कृतिक और आत्मिक स्तर तक ले जाएँ।
Hide Solution
collegedunia
Verified By Collegedunia

Solution and Explanation

परसेवा अर्थात निःस्वार्थ रूप से दूसरों की सहायता करना — यह न केवल मानवीय संवेदना की पहचान है, बल्कि आत्मिक आनंद का भी प्रमुख स्रोत है।
आज के व्यस्त, स्वार्थमय और यांत्रिक जीवन में जब संबंधों में औपचारिकता और संवेदनशीलता का अभाव होता जा रहा है, वहाँ परसेवा का महत्व और अधिक बढ़ जाता है।
जब हम किसी को बिना किसी अपेक्षा के मुस्कान, सहायता या सहारा देते हैं, तब हमें जो आत्मिक तृप्ति मिलती है, वह किसी भी भौतिक सुख से बढ़कर होती है।
परसेवा वह दीपक है, जो स्वयं जलकर दूसरों के जीवन को रोशन करता है।
गुरुनानक, विवेकानंद, मदर टेरेसा जैसे महापुरुषों ने सेवा को जीवन का आधार बनाया।
सेवा चाहे किसी गरीब को भोजन देना हो, किसी वृद्ध की देखभाल, किसी छात्र को मार्गदर्शन देना — ये सब परसेवा के विविध रूप हैं।
यह समाज में करुणा, सहानुभूति और सहभागिता की भावना विकसित करता है।
परसेवा केवल एक क्रिया नहीं, अपितु एक दृष्टिकोण है, जो व्यक्ति को अहंकार से मुक्त कर विनम्रता की ओर ले जाता है।
अतः यह न केवल समाज को सशक्त बनाती है, बल्कि स्वयं सेवक के जीवन में भी संतुलन, संतोष और आंतरिक समृद्धि का संचार करती है।
Was this answer helpful?
0
0