दिये गये पद्यांशों में से किसी एक का समतुल्य हिन्दी में अनुवाद कीजिए।
परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्याक्षे प्रियवादिनम्। वर्जयेत् तादृशं मित्रं विषकुम्भं पयोमुखम्।।
\(\textbf{Step 1: भूमिका.}\)
यह श्लोक \(\textbf{मित्रता और व्यवहार की शुद्धता}\) पर आधारित है। इसमें ऐसे मित्र की पहचान कराई गई है जो सामने तो मीठे वचन बोलता है, परंतु पीछे से हानि पहुँचाता है। यह श्लोक हमें सच्चे और कपटी मित्र में भेद करना सिखाता है।
\(\textbf{Step 2: अनुवाद (भावार्थ).}\)
जो व्यक्ति सामने प्रिय वचन बोलता है, परंतु पीछे से किसी का कार्य बिगाड़ता है, ऐसे कपटी मित्र को त्याग देना चाहिए। ऐसा व्यक्ति उसी प्रकार है जैसे एक घड़ा जिसमें अंदर विष भरा हो, लेकिन मुख पर दूध (पयः) रखा हो। वह बाहर से मीठा और आकर्षक प्रतीत होता है, परंतु भीतर से घातक और विनाशकारी होता है।
\(\textbf{Step 3: विश्लेषण.}\)
यहाँ कवि ने \(\textbf{विषकुम्भं पयोमुखम्}\) उपमा देकर कपटी मित्र की तुलना एक ऐसे पात्र से की है जो बाहर से मीठा और अंदर से विषैला है। इस प्रकार के लोग दिखावे में स्नेहपूर्ण होते हैं परंतु अवसर पड़ने पर छल करते हैं। श्लोक का तात्पर्य यह है कि मित्रता सच्चे मन और निष्ठा पर आधारित होनी चाहिए, न कि छल और स्वार्थ पर।
\(\textbf{Step 4: निष्कर्ष.}\)
श्लोक का निष्कर्ष यह है कि सच्चा मित्र वही होता है जो सुख-दुःख, सामने और पीछे — दोनों स्थितियों में समान रूप से शुभचिंतक हो। जो व्यक्ति केवल सामने से मीठा व्यवहार करे परंतु पीछे से हानि पहुँचाए, उससे सदैव दूर रहना चाहिए।
\[ \text{सच्चा मित्र} = \text{निष्ठा + सत्य + कल्याणभाव} \quad \text{और} \quad \text{कपटी मित्र} = \text{छल + स्वार्थ + दिखावा} \]