दिये गये पद्यांशों में से किसी एक का ससन्दर्भ हिन्दी में अनुवाद कीजिए :
न मे रोचते भद्रं वः उलूकस्याभिषेचनम् ।
अक्रुद्धस्य मुखं पश्य कथं क्रुद्धो भविष्यति ।।
सन्दर्भ: यह श्लोक संस्कृत साहित्य में 'काक उलूक' के संवाद से लिया गया है, जिसमें उलूक (न्यायशास्त्र में एक पक्षी) काक से अपने अभिषेक के तरीके के बारे में बात करता है।
हिन्दी अनुवाद: हे भद्र जनों, मुझे उलूक का अभिषेक नहीं पसंद है। यदि कोई व्यक्ति क्रोधित न हो तो उसके मुख से क्रोध कैसे प्रकट होगा? यही कारण है कि एक व्यक्ति जो शांत और सजीव है, उसे कोई भी तरीका अपव्ययी या अनुकूल नहीं लग सकता।
दिये गये पद्यांशों में से किसी एक का ससन्दर्भ हिन्दी में अनुवाद कीजिए :
जल-बिन्दु-निपातेन क्रमशः पूर्यते घटः ।
सहेतुः सर्वविद्यानां धर्मस्य च धनस्य च ।।
नीचे दिए गये पद्यांश का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए।
पद्यांश
माता गुरुतरा भूमेः ख्यात् पितोच्चतरस्तथा।
मनः शीघ्रतरं वातात् चिन्ता बहुतरी तृणात्॥
नीचे दिए गये पद्यांश का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए।
पद्यांश
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग् भवेत्॥
निम्नलिखित में से किसी एक संस्कृत पद्यांश का संदर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए।
पद्यांश 1 –
अपदो दूरगामी च साक्षरो न च पण्डितः।
अमुखः स्पष्टवक्ता च यो जानाति स पण्डितः॥
अथवा
पद्यांश 2 –
मानं हित्वा प्रियो भवति क्रोधं हित्वा न शोचति।
कामं हित्वार्थवान् भवति लोभं हित्वा सुखी भवेत्॥
'मुक्तिदूत' खण्डकाव्य के आधार पर गाँधीजी का चरित्र-चित्रण कीजिए।