दिये गये पद्यांशों में से किसी एक का ससन्दर्भ हिन्दी में अनुवाद कीजिए :
जल-बिन्दु-निपातेन क्रमशः पूर्यते घटः ।
सहेतुः सर्वविद्यानां धर्मस्य च धनस्य च ।।
सन्दर्भ: यह श्लोक संस्कृत में शिक्षा, धर्म और धन के संदर्भ में दिया गया है, और यह यह बताता है कि जैसे जल बूँद-बूँद से घड़ा भरता है वैसे ही ज्ञान, धर्म और धन भी धीरे-धीरे बढ़ते हैं।
हिन्दी अनुवाद: जैसे जल की प्रत्येक बूँद से घड़ा धीरे-धीरे भरता है, वैसे ही सभी प्रकार की विद्या, धर्म और धन भी धीरे-धीरे अपनी गति से इकट्ठे होते हैं। इसमें धैर्य और संयम का होना आवश्यक है, क्योंकि एक-एक कदम से ही समृद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
दिये गये पद्यांशों में से किसी एक का ससन्दर्भ हिन्दी में अनुवाद कीजिए :
न मे रोचते भद्रं वः उलूकस्याभिषेचनम् ।
अक्रुद्धस्य मुखं पश्य कथं क्रुद्धो भविष्यति ।।
नीचे दिए गये पद्यांश का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए।
पद्यांश
माता गुरुतरा भूमेः ख्यात् पितोच्चतरस्तथा।
मनः शीघ्रतरं वातात् चिन्ता बहुतरी तृणात्॥
नीचे दिए गये पद्यांश का सन्दर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए।
पद्यांश
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग् भवेत्॥
निम्नलिखित में से किसी एक संस्कृत पद्यांश का संदर्भ सहित हिन्दी में अनुवाद कीजिए।
पद्यांश 1 –
अपदो दूरगामी च साक्षरो न च पण्डितः।
अमुखः स्पष्टवक्ता च यो जानाति स पण्डितः॥
अथवा
पद्यांश 2 –
मानं हित्वा प्रियो भवति क्रोधं हित्वा न शोचति।
कामं हित्वार्थवान् भवति लोभं हित्वा सुखी भवेत्॥
'मुक्तिदूत' खण्डकाव्य के आधार पर गाँधीजी का चरित्र-चित्रण कीजिए।