List of practice Questions

निम्नलिखित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :
दुर्गा प्र. नौटियाल : आपने अब तक काफी साहित्य रचा आपने अब तक काफी साहित्य रचा है। क्या आप इससे संतुष्ट हैं ?
शिवानी : जहाँ तक संतुष्ट होने का संबंध है, मैं समझती हूँ कि किसी को भी अपने लेखन से संतुष्ट नहीं होना चाहिए। मैं चाहती हूँ कि ऐसे लक्ष्य को सामने रखकर कुछ ऐसा लिखूँ कि जिस परिवेश को पाठक ने स्वयं भोगा है, उसे जीवंत कर दूँ। मुझे तब बहुत ही अच्छा लगता जब कोई पाठक मुझे लिख भेजता है कि आपने अमुक-अमुक चरित्र का वास्तविक वर्णन किया है अथवा फल-फलाँ चरित्र, लगता है, हमारे ही बीच है। लेकिन साथ ही मैं यह मानती हूँ कि लोकप्रिय होना न इतना आसान और न ही उसे बनाए रखना आसान है। मैं गत पचास वर्षों से बराबर लिखती आ रही हूँ। पाठक मेरे लेखन को खूब सराह रहे हैं। मेरे असली आलोचक तो मेरे पाठक हैं, जिनसे मुझे प्रशंसा और स्नेह भरपूर मात्रा में मिलता रहा है। शायद यही कारण है कि मैं अब तक बराबर लिखती आई हूँ।

निम्नलिखित अपठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए:
यह एक 'साधारण महिला' की असाधारण कहानी है, जो अपनी असाधारण पारिवारिक पृष्ठभूमि से प्रोत्साहन व प्रेरणा लेकर सफलता के शिखर पर पहुँची है।
वहाँ अंतरिक्ष में रहते हुए सुनीता का मन बारिश में भीगने, समुद्र या झील या फिर सरोवर में तैरने को कर रहा था। दरअसल अंतरिक्ष में रहते हुए हरदम गंदगी - सी महसूस होती है। भारहीनता के कारण पसीने की बूँदें त्वचा से चिपकी रहती हैं और धीरे-धीरे इकट्ठा होकर त्वचा को छोड़ देती हैं, लेकिन किसी चीज से टकराने से पहले वे इधर-उधर तैरती-सी रहती हैं।
कभी-कभी सुनीता का पृथ्वी को स्पर्श करने का मन करता था। वह अपोलो के अंतरिक्ष यात्रियों के बारे में सोचने लगती थी और यह सोचती थी कि चंद्रमा पर पूरी तरह उतरने से पहले ही पृथ्वी पर वापस आना उन्हें कितना निराशाजनक लगा होगा।
रात होते ही पृथ्वी जैसे टिमटिमाने लगती थी और जो क्षेत्र दिन में वीरान दिखाई दे रहे थे, वे चमत्कारी रूप से छोटी-छोटी बत्तियों के प्रकाश से जगमगा उठते थे। ऐसे में सुनीता का जी करता था, 'समुद्र में डुबकी लगाने का'।

निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :
मेरा जीवन एक खुली किताब रहा है। मेरे न कोई रहस्य हैं और न मैं रहस्यों को प्रश्रय देता हूँ । मैं पूरी तरह भला बनने के लिए संघर्षरत एक अदना सा इनसान हूँ। मैं मन, वाणी और कर्म से पूरी तरह सच्चा और पूरी तरह अहिंसक बनने के लिए संघर्षरत हूँ । यह लक्ष्य सच्चा है, यह मैं जानता हूँ पर उसे पाने में बार-बार असफल हो जाता हूँ। मैं मानता हूँ कि इस लक्ष्य तक पहुँचना कष्टकर है पर यह कष्ट मुझे निश्चित आनंद देने वाला लगता है। इस तक पहुँचने की प्रत्येक सीढ़ी मुझे अगली सीढ़ी तक पहुँचने के लिए शक्ति तथा सामर्थ्य देती है।
जब मैं एक और अपनी लपता और अपनी सीमाओं के बारे में सोचना हूँ और दूसरी और मुझमे लोगों की जो अपेक्षाएँ हो गई हैं, उनकी बात सोचना है तो एक क्षण के लिए तो मैं स्तब्ध रह जाता है। फिर यह समझकर प्रकृतिस्थ हो जाता हूँ कि ये अपेक्षाएँ मुझसे नहीं हैं। ये सत्य और अहिंसा के दो अमूल्य गुर्णी के मुझमें अवतरण है। यह अवतरण कितना ही अपूर्ण हो पर मुझमें अपेक्षाकृत अधिक द्रष्टव्य है।

निम्नलिखित पठित गद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ कीजिए :
मेरे मन में ढेरों सवाल उठते । आखिर ये इस तरह 'वी' आकार बनाकर क्यों उड़ रहे हैं ? ये सब कहीं जा रहे हैं ? सबसे पीछे वाला सबसे आगे क्यों नहीं आने की कोशिश कर रहा ? बीचवाला क्यों अपनी जगह पर उसी रफ्तार से चला जा रहा है ? क्या किसी ने इन्हें निर्देश दिया है कि ऐसे ही उड़ना है ? कौन है इनका निर्देशक ?
बहुत से सवाल लेकर जब मैं माँ के पास आता, तो माँ मेरा सिर सहलाती। कहती कि ये मानसरोवर के राजहंस हैं।
"तो ये सारे हंस जो इस तरह एक गति से उड़ते हैं, उसका क्या मतलब हुआ ?"
"ये आपस में रिश्तेदार हैं। "
"सबसे आगे वाला उनका नेता होता है। वही उड़ने की रफ्तार और दिशा तय करता है। उसके पंखों को बाकियों से ज्यादा मेहनत करनी होती है। सामने आने वाले खतरों को वह पहले पहचानता है। वह हवा को काटता है। उसके बाद बाकी के हंस हवा को काटते हुए चलते हैं और अपने से पीछे उड़ने वाले हंसों के लिए वह उड़ान को आसान बनाते चलते हैं।" - माँ कहतीं।