(i) पर्यावरण-प्रदूषण की समस्या एवं समाधान
प्रस्तावना (परिचय): 'पर्यावरण' शब्द 'परि' और 'आवरण' दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है 'चारों ओर से घेरे हुए'। हमारे चारों ओर जो कुछ भी है- वायु, जल, मिट्टी, पेड़-पौधे, जीव-जन्तु, सभी मिलकर पर्यावरण का निर्माण करते हैं। जब इन प्राकृतिक घटकों में कोई अवांछनीय परिवर्तन होता है, जो जीवधारियों के लिए हानिकारक हो, तो उसे 'पर्यावरण-प्रदूषण' कहते हैं। आज यह एक वैश्विक समस्या बन चुका है।
प्रदूषण के प्रकार: प्रदूषण मुख्य रूप से चार प्रकार का होता है:
वायु प्रदूषण: कारखानों की चिमनियों, मोटर-गाड़ियों और कल-कारखानों से निकलने वाला धुआँ वायु को प्रदूषित करता है। इससे साँस की बीमारियाँ, जैसे- अस्थमा, फेफड़ों का कैंसर आदि होती हैं।
जल प्रदूषण: कारखानों के कचरे और शहरों के गंदे नालों को नदियों और तालाबों में बहा देने से जल प्रदूषित हो जाता है। प्रदूषित जल पीने से हैजा, पीलिया, टाइफाइड जैसे रोग होते हैं।
ध्वनि प्रदूषण: मोटर-गाड़ियों, लाउडस्पीकरों, मशीनों और कारखानों के शोर से ध्वनि प्रदूषण होता है। इससे बहरापन, उच्च रक्तचाप और मानसिक तनाव जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
मृदा प्रदूषण: खेतों में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग तथा प्लास्टिक कचरे के कारण मिट्टी की उर्वरा शक्ति नष्ट हो रही है, जिसे मृदा प्रदूषण कहते हैं।
प्रदूषण के कारण: प्रदूषण के मुख्य कारण हैं - बढ़ती जनसंख्या, औद्योगीकरण, वनों की अंधाधुंध कटाई, शहरीकरण और मनुष्य की स्वार्थपूर्ण गतिविधियाँ।
समस्या का समाधान (निवारण): पर्यावरण-प्रदूषण की समस्या को रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिए:
अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाए जाएँ।
जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण किया जाए।
कारखानों के अपशिष्ट पदार्थों को उपचारित करके ही बाहर छोड़ा जाए।
प्लास्टिक का प्रयोग बंद किया जाए और कचरे का सही निस्तारण किया जाए।
सौर ऊर्जा जैसे ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों को बढ़ावा दिया जाए।
लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाई जाए।
उपसंहार (निष्कर्ष): पर्यावरण हमारा जीवन-आधार है। इसे स्वच्छ और संतुलित रखना हम सभी का कर्तव्य है। यदि हम अभी भी सचेत नहीं हुए, तो यह प्रदूषण एक दिन सम्पूर्ण मानव-सभ्यता के विनाश का कारण बन सकता है। सरकार और समाज के सम्मिलित प्रयासों से ही इस समस्या पर विजय प्राप्त की जा सकती है।