प्रस्तावना:
"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।" यह प्रसिद्ध कथन भारतेंदु हरिश्चंद्र जी का है, जो यह स्पष्ट करता है कि किसी भी देश की उन्नति उसकी भाषा पर निर्भर करती है। भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और सभ्यता की धरोहर होती है। किसी राष्ट्र की प्रगति तभी संभव है, जब उसकी मातृभाषा को उचित सम्मान और स्थान दिया जाए। भाषा के बिना ज्ञान का प्रसार संभव नहीं, और ज्ञान के बिना उन्नति असंभव है।
मातृभाषा का महत्व:
संस्कृति और परंपरा का वाहक: प्रत्येक भाषा अपने समाज की संस्कृति और परंपराओं को सहेज कर रखती है। हमारी मातृभाषा हमें अपनी जड़ों से जोड़े रखती है और हमारी पहचान को संरक्षित करती है।
शिक्षा और बौद्धिक विकास का आधार: मनुष्य अपनी मातृभाषा में ही सर्वश्रेष्ठ रूप से सीख सकता है। जब हम अपनी भाषा में ज्ञान प्राप्त करते हैं, तो वह हमारी सोचने और समझने की शक्ति को बढ़ाता है।
राष्ट्रीय एकता और आत्मसम्मान: किसी भी राष्ट्र की पहचान उसकी भाषा से होती है। जब नागरिक अपनी भाषा को महत्व देते हैं, तो उनमें राष्ट्र के प्रति गर्व और आत्मसम्मान की भावना उत्पन्न होती है।
लोकतंत्र और शासन व्यवस्था में भूमिका: प्रशासन और न्यायपालिका में मातृभाषा के प्रयोग से आम जनता की भागीदारी बढ़ती है। जब कोई सरकार अपनी जनता की भाषा में कार्य करती है, तो नीतियाँ अधिक प्रभावी होती हैं।
विज्ञान, तकनीक और नवाचार में योगदान: विज्ञान और तकनीक में विकास तब अधिक होता है, जब शिक्षा मातृभाषा में दी जाए। चीन, जापान और रूस जैसे देशों ने अपनी भाषा में शिक्षा और शोध को बढ़ावा देकर अपार प्रगति की है।
भाषा के प्रति उपेक्षा के दुष्परिणाम:
संस्कृति का लोप: यदि कोई देश अपनी भाषा को महत्व नहीं देता, तो धीरे-धीरे उसकी संस्कृति भी विलुप्त होने लगती है।
शिक्षा में बाधा: विदेशी भाषा में शिक्षा ग्रहण करने से विद्यार्थी अपनी पूरी क्षमता का उपयोग नहीं कर पाते, जिससे उनका बौद्धिक विकास अवरुद्ध हो जाता है।
राष्ट्रीय अस्मिता का संकट: जब लोग अपनी भाषा का सम्मान नहीं करते, तो उनकी राष्ट्रीय पहचान भी खतरे में पड़ जाती है।
आर्थिक असमानता: केवल विदेशी भाषा पर निर्भर रहने से समाज में असमानता बढ़ती है, क्योंकि सभी लोगों को वह भाषा सीखने के समान अवसर नहीं मिलते।
मातृभाषा के संरक्षण और उन्नति के उपाय:
शिक्षा में मातृभाषा को प्राथमिकता: सभी स्तरों की शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए, जिससे विद्यार्थी विषयों को बेहतर तरीके से समझ सकें।
सरकारी कामकाज में मातृभाषा का उपयोग: प्रशासन, न्यायालय और सरकारी नीतियों में मातृभाषा का अधिकाधिक प्रयोग किया जाना चाहिए।
साहित्य और शोध को बढ़ावा देना: मातृभाषा में अधिक से अधिक साहित्य, विज्ञान, इतिहास और तकनीकी विषयों पर पुस्तकें प्रकाशित की जानी चाहिए।
मीडिया और मनोरंजन में भाषा का प्रयोग: समाचारपत्र, टीवी, सिनेमा और डिजिटल मीडिया में मातृभाषा को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
भाषा जागरूकता अभियान: लोगों को उनकी भाषा के महत्व के बारे में शिक्षित किया जाना चाहिए, ताकि वे अपनी भाषा के प्रति गर्व महसूस करें।
निष्कर्ष:
किसी भी राष्ट्र की पहचान उसकी भाषा से होती है। अपनी मातृभाषा को सशक्त बनाकर ही कोई देश विकास की ओर बढ़ सकता है। "निज भाषा उन्नति अहै" केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि यह एक विचारधारा है, जो हमें अपनी भाषा के प्रति जागरूक होने और उसे बढ़ावा देने की प्रेरणा देती है। इसलिए, हमें अपनी भाषा का सम्मान करना चाहिए और इसे शिक्षा, प्रशासन और विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ाना चाहिए।