1. प्रस्तावना
'अनुशासन' शब्द 'शासन' के पीछे 'अनु' उपसर्ग लगने से बना है, जिसका अर्थ है 'शासन के पीछे चलना'। अनुशासन का तात्पर्य नियमों का सही ढंग से पालन करना है। विद्यार्थी जीवन मनुष्य के जीवन का स्वर्णिम काल होता है। यह वह समय है जब उसके चरित्र का निर्माण होता है और भविष्य की नींव रखी जाती है। इस नींव को सुदृढ़ बनाने के लिए अनुशासन रूपी सीमेंट की आवश्यकता होती है। एक अनुशासित छात्र ही अपने भविष्य को उज्ज्वल बना सकता है।
2. विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का महत्त्व
विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का अत्यधिक महत्त्व है। अनुशासन ही छात्र को समय का सदुपयोग करना सिखाता है। एक अनुशासित छात्र अपनी दिनचर्या बनाता है और उसके अनुसार अपने पढ़ने, खेलने और सोने का समय निर्धारित करता है। इससे उसका शारीरिक और मानसिक विकास संतुलित रूप से होता है। अनुशासन छात्र में कर्तव्यनिष्ठा, आज्ञाकारिता और अच्छे चरित्र जैसे गुणों का विकास करता है। अनुशासन के बिना ज्ञान प्राप्त करना भी कठिन है। कक्षा में शान्त और अनुशासित रहकर ही छात्र शिक्षक की बातों को भली-भाँति समझ सकता है।
3. अनुशासनहीनता के कारण और दुष्प्रभाव
आज के समय में छात्रों में अनुशासनहीनता एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। इसके कई कारण हैं, जैसे - पारिवारिक संस्कारों की कमी, पश्चिमी संस्कृति का अंधानुकरण, मोबाइल और इंटरनेट का अत्यधिक प्रयोग, तथा नैतिक शिक्षा का अभाव। अनुशासनहीन छात्र न तो स्वयं का विकास कर पाता है और न ही समाज का। वह अपने लक्ष्य से भटक जाता है और उसका भविष्य अंधकारमय हो जाता है। अनुशासनहीनता समाज में अराजकता और अव्यवस्था को जन्म देती है।
4. उपसंहार
अनुशासन सफलता की कुंजी है। प्रकृति का कण-कण अनुशासन में बँधा है। सूर्य समय पर उगता है, ऋतुएँ समय पर आती-जाती हैं। यदि प्रकृति अनुशासन तोड़ दे तो प्रलय आ जाएगी। इसी प्रकार, यदि छात्र अनुशासनहीन हो जाए तो उसका जीवन नष्ट हो सकता है। अतः, प्रत्येक छात्र का यह परम कर्त्तव्य है कि वह अनुशासन के महत्त्व को समझे और उसे अपने जीवन में अपनाए। एक अनुशासित छात्र ही भविष्य में एक आदर्श नागरिक बनकर देश की प्रगति में अपना योगदान दे सकता है।