Comprehension

निम्नलिखित पद्यांश पर आधारित प्रश्नों के उत्तर लिखिए:
कान्ह-दूत कैधौं ब्रह्म-दूत है पधारे आप, धारे प्रून फेरन कौ मति ब्रजबारी की । 
कहैं 'रत्नाकर' पै प्रीति-रीति जानत ना, ठानत अनीति आनि रीति ले अनारी की ।
मान्यौ हम, कान्ह ब्रह्म एक ही, कह्यौ जो तुम, तोहूँ हमें भावति न भावना अन्यारी की ।
जैहै बनि बिगरि न बारिधिता बारिधि की, बूँदता बिलैहै बूँद बिबस बिचारी की ।

Question: 1

उपर्युक्त पद्यांश के पाठ और रचयिता का नाम लिखिए।

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सूरदास जी ने भगवान श्री कृष्ण को भक्ति और ब्रह्म के रूप में प्रस्तुत किया, जो भक्ति साहित्य का एक अद्वितीय उदाहरण है।
Updated On: Nov 14, 2025
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Solution and Explanation

उपर्युक्त पद्यांश का पाठ 'रत्नाकर' है, और इसे सूरदास जी ने रचित किया है। यह पद्यांश भगवान श्री कृष्ण की ब्रह्म की अंश में उपस्थिति को व्यक्त करता है।
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Question: 2

गोपियों ने किसे और क्यों 'अनारी' कहा है ?

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गोपियाँ श्री कृष्ण के परमात्मा रूप को पहचानने में असमर्थ थीं, यही कारण था कि उन्हें 'अनारी' कहा गया।
Updated On: Nov 14, 2025
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Solution and Explanation

गोपियों ने श्री कृष्ण को 'अनारी' कहा है क्योंकि वे उन्हें और उनके व्यवहार को समझ नहीं पाईं। गोपियाँ श्री कृष्ण की रासलीला के माध्यम से उनके ब्रह्म रूप का अनुभव नहीं कर पाईं, अत: उन्हें अनाड़ी और अज्ञानी समझा।
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Question: 3

अनीति' और 'भावति' शब्दों का अर्थ लिखिए।

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'अनीति' और 'भावति' दोनों शब्दों में समाज और मानव व्यवहार के दो विभिन्न पहलुओं को व्यक्त किया गया है।
Updated On: Nov 14, 2025
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'अनीति' शब्द का अर्थ है 'अन्याय' या 'गलत तरीका'। 'भावति' शब्द का अर्थ है 'भावना', 'चाहत' या 'प्रेम'।
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Question: 4

कान्ह-दूत कैधौं ब्रह्म- दूत है पधारे आप' - पंक्ति में कौन-सा अलंकार प्रयुक्त है ?

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रूपक अलंकार में किसी वस्तु या व्यक्ति का गुण, रूप, या अवस्था किसी अन्य वस्तु से संबंधित करके व्यक्त किया जाता है।
Updated On: Nov 14, 2025
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Solution and Explanation

इस पंक्ति में 'रूपक अलंकार' प्रयुक्त है। भगवान श्री कृष्ण को 'कान्ह-दूत' और 'ब्रह्म-दूत' के रूप में व्यक्त किया गया है, जिससे उनकी दिव्यता और सम्पूर्ण ब्रह्म में उपस्थिति को चित्रित किया गया है।
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Question: 5

रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

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सूरदास जी ने भगवान श्री कृष्ण के ब्रह्म रूप की विशेषताओं को व्यक्त करते हुए उनकी महिमा और अपार भक्ति को स्पष्ट किया।
Updated On: Nov 14, 2025
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Solution and Explanation

रेखांकित अंश में सूरदास जी यह व्यक्त कर रहे हैं कि जैसे समुद्र में बदलते हुए जल की तरह भगवान श्री कृष्ण का रूप है। वह निर्मल और शुद्ध ब्रह्म के रूप में सबका पालन करते हैं, जो परिवर्तनशील होते हुए भी स्थिर होते हैं। यह अंश उनकी अद्वितीय स्थिति और भक्ति के महत्व को प्रदर्शित करता है।
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