निम्नलिखित पत्र पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृतियाँ का मूल्यांकन करें:
आम तौर से माना जाता है कि रूप, नोट या स्त्री-पुरुष की क्रियाएँ में विकर्षण के संकेत होते हैं। लेकिन यह स्पष्ट रूप से संकेत होता है कि किसी भी व्यक्ति के क्रियाएँ में कुछ विचित्रता हो सकती है। कुछ विशेष दिशाओं की ओर संकेत करते हुए यह विचारणीय विषय होता है। इनकी चेतना यह प्रक्रिया में स्पष्ट होती है। एक व्यक्ति की शारीरिक स्थिति, शारीरिक और मानसिक सक्रियता का प्रतिबिंब स्वयं करने में कुछ संकेत और सवाल भी प्रकट करता है। यह विकास कार्य ऐसा है।
प्रस्ताव को उसने जो संकल्प किया है वह बड़ों के समक्ष क्या सकते हैं? प्रकृति और संसारों के चहेते विषयों से खुद तक के भ्रम और लहरों को हमसे सुलझाए नहीं जा सकते हैं। संस्कृत की प्रकृति अध्ययन प्रक्रिया में फाइनल पंक्तियाँ के बारे में क्या लिखा गया है? शारीरिक स्थितियां संतुलित हो सकती हैं, लेकिन कभी एक लक्ष्य नहीं हो सकता है। संकल्प का प्रमुख स्थान भी है। रचनाओं के लिए आकार, जिसमें प्रत्येक दिशा को निर्देशित किया जाता है, इस समय शारीरिक दृष्टिकोण और भावना शारीरिक दृष्टिकोण से बहुत बदलने से निर्णय नहीं कर सकते।
आकृति में दिए गए शब्दों का सूचना के अनुसार वर्गीकरण करें:
रूप, स्थिति के शब्द
(1) रूप्या
(2) श्रम
(3) मनुष्य का शरीर
(4) मकान
संपत्ति के मुख्य साधन
(1) रूप
(2) मकान
मनुष्य की प्राधिकिक आवश्यकताएँ
(1) श्रम
(2) मनुष्य का शरीर
Step 1: रूप, स्थिति के शब्द
इन शब्दों में वह तत्व शामिल हैं जो किसी व्यक्ति या वस्तु की शारीरिक स्थिति, रूप और संरचना को दर्शाते हैं।
- रूप्या: यह शब्द रूप को दर्शाता है।
- मनुष्य का शरीर: यह शारीरिक स्थिति का संकेत करता है।
Step 2: संपत्ति के मुख्य साधन
यहां उन शब्दों का उल्लेख किया गया है जो किसी व्यक्ति की संपत्ति और संसाधनों को दर्शाते हैं।
- रूप: यह एक प्रकार की संपत्ति है, जो शारीरिक सौंदर्य को दर्शाता है।
- मकान: यह संपत्ति का मुख्य साधन है, जो व्यक्ति का घर और आश्रय है।
Step 3: मनुष्य की प्राधिकिक आवश्यकताएँ
यह श्रेणी उन शब्दों को दर्शाती है जो मनुष्य की बुनियादी और आवश्यक आवश्यकताओं को सूचित करते हैं।
- श्रम: यह आवश्यक कार्य है, जो मनुष्य की शारीरिक और मानसिक शक्ति का उपयोग करता है।
- मनुष्य का शरीर: यह मनुष्य की शारीरिक संरचना है, जो उसके जीवन और कार्यों के लिए आवश्यक है।
उत्तर लिखिए:
गद्यांश में उल्लिखित ख्याल
ख्याल गलत होने का कारण
Step 1: गद्यांश में उल्लिखित ख्याल
गद्यांश में लेखक के विचारों को समझते हुए, यह ख्याल प्रस्तुत किया जाता है कि व्यक्तियों के विचारों में अक्सर उलझनें होती हैं। कुछ विचार सामान्यतः गलत होते हैं, क्योंकि वे आधे अधूरे ज्ञान या गलत समझ पर आधारित होते हैं।
Step 2: ख्याल गलत होने का कारण
गलत ख्यालों का कारण अक्सर अधूरी जानकारी, भ्रम, या जल्दबाजी में किए गए निर्णय होते हैं। इस प्रकार के ख्यालों में तथ्यात्मक गलतियाँ हो सकती हैं, जो उन्हें सही से नहीं समझने का परिणाम होती हैं।
सूत्रों के अनुसार कृति पूर्ण कीजिए:
(i) गद्यांश में प्रमुख शब्दक्रम लिखिए:
(1) ..............................
(2) ..............................
(ii) वाक्य परिवर्तन करके वाक्य फिर से लिखिए:
चीजें बनती दिखती हैं।
Step 1: प्रमुख शब्दक्रम
गद्यांश में शब्दक्रम का महत्व है, क्योंकि शब्दों के सही क्रम में आने से विचारों का सही और स्पष्ट तरीके से संप्रेषण होता है। प्रमुख शब्दक्रम वह होते हैं जो गद्यांश के मुख्य बिंदु या संदेश को प्रकट करते हैं।
Step 2: वाक्य परिवर्तन
वाक्य को परिवर्तन करते समय हमें उसके अर्थ को बदले बिना उसे नए रूप में प्रस्तुत करना होता है। यहाँ पर, "चीजें बनती दिखती हैं" को हम बदल सकते हैं: "चीजें बन रही हैं।"
शारीरिक श्रम का महत्व' विषय पर 25 से 30 शब्दों में अपने विचार लिखिए।
Step 1: शारीरिक श्रम का महत्व
शारीरिक श्रम जीवन का अभिन्न हिस्सा है। यह न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है, बल्कि मानसिक स्थिति को भी सुदृढ़ करता है। श्रम से शरीर मजबूत होता है और व्यक्ति की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है। यह समाज की भलाई और प्रगति के लिए भी महत्वपूर्ण है। शारीरिक श्रम से मनुष्य का आत्मविश्वास बढ़ता है और जीवन में उद्देश्य की भावना जाग्रत होती है।
जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण उपकरण है। यह जीवन के कठिन समय में चुनौतियों का सामना करने का मार्ग प्रशस्त करती है। शिक्षा-प्राप्ति के दौरान प्राप्त किया गया ज्ञान व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाता है। शिक्षा जीवन में बेहतर संभावनाओं को प्राप्त करने के अवसर के लिए प्रेरित बनाती है। व्यक्ति के जीवन को बढ़ाने के लिए सरकारें कई बहुत से योजनाओं और अवसरों का संचालन करती रही हैं।
शिक्षा मनुष्य को समाज में समानता का अधिकार दिलाने का माध्यम है। जीवन के विकास की ओर बढ़ा देती है। आज के वैज्ञानिक एवं तकनीकी युग में शिक्षा का महत्व और भी बढ़ गया है। यह व्यक्ति को जीवन में बहुत सारी सुविधाएँ प्राप्त करने का मार्ग प्रदान करती है। शिक्षा का उद्देश्य अब केवल रोजगार प्राप्त करना ही नहीं, बल्कि व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास के लिए भी आवश्यक है।
आज का विद्यार्थी शिक्षा के माध्यम से समाज को जोड़ने की कड़ी बन सकता है। शिक्षा व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाती है, व्यक्ति को समय के साथ चलने और आगे बढ़ने में मदद करती है। यह व्यक्ति को अनुशासन, परिश्रम, धैर्य और शिक्षा जैसे मूल्य सिखाती है। शिक्षा व्यक्ति को समाज के लिए उपयोगी बनाती है और जीवन में अनेक छोटे-बड़े कार्यों में विभिन्न कौशलों को विकसित करती है। यही कारण है कि आज प्रत्येक व्यक्ति शिक्षा प्राप्त करना चाहता है और समाज में दृढ़ता प्राप्त कर सही मार्ग पर खड़ा हो सकता है।
बार-बार आती है मुखाकृति मधुर, याद बचपन तेरी।
गया ले गया तू जीवन की सबसे मधुर खुशी मेरी।
चिंता रहित खेलना-खाना वह फिरना निर्बंध स्वच्छंद।
कैसे भुला जा सकता है बचपन का अद्भुत आनंद।
ऊँच-नीच का ज्ञान नहीं था, छुआ-छूत किसे कहते?
बनी हुई थी वहीं झोपड़ी और सीपियों से नावें।
रोना और मचल जाना भी क्या आनंद दिखाते थे।
बड़े-बड़े मोती सी आँसू, चुपचाप बहा जाते थे।
वह सुख जो साधारण जीवन छोड़कर महत्वाकांक्षाएँ बड़ी हुईं।
टूट गईं कुछ खो गईं हुई-सी दौड़-धूप घर खड़ी हुईं।
नाटक की तरह एकांकी में चरित्र अधिक नहीं होते। यहाँ प्रायः एक या अधिक चरित्र नहीं होते। चरित्रों में भी केवल नायक की प्रधानता रहती है, अन्य चरित्र उसके व्यक्तित्व का प्रसार करते हैं। यही एकांकी की विशेषता है कि नायक सर्वत्र प्रमुखता पाता है। एकांकी में घटनाएँ भी कम होती हैं, क्योंकि सीमित समय में घटनाओं को स्थान देना पड़ता है। हास्य, व्यंग्य और बिंब का काम अक्सर चरित्रों और नायक के माध्यम से होता है। एकांकी का नायक प्रभावशाली होना चाहिए, ताकि पाठक या दर्शक पर गहरा छाप छोड़ सके।
इसके अलावा, घटनाओं के उद्भव-पतन और संघर्ष की आवश्यकता नहीं पड़ती क्योंकि नायक ही संपूर्णता में कथा का वाहक होता है। यही कारण है कि नाटकों की तरह इसमें अनेक पात्रों का कोई बड़ा-छोटा संघर्ष नहीं होता। नायक के लिए सर्वगुणसंपन्न होना भी आवश्यक नहीं होता। वह साधारण जीवन जीता हुआ व्यक्ति भी हो सकता है।
इस गद्यांश से यह स्पष्ट होता है कि एकांकी में चरित्रों की संख्या सीमित होती है, नायक अधिक प्रभावशाली होता है और बाहरी संघर्ष बहुत कम दिखाया जाता है।
जवाहरलालनेहरूशास्त्री कञ्चन करणीनामकशिल्पिनः आसीत । मियालगोटेर्यालेयां स्थितः सः आरक्षका: मातृका: हत आसीत: आसीत तद्विषये । सः विज्ञानानन्दसदनं नीत्वा तत्र कार्स्यमं पृष्ट्वा गुरुकुलं अध्यायान्वितं स्म । गार्हस्थ्यं यः सहाय्यं कुर्वीत तस्मै योगः: पुरस्कारः दायते हि सर्वकारणं धार्मिकत्व आसीत ।
कविलासः जवाहरलालनेहरूशास्त्री तेह्रुआं स्फूर्तं परं स्थितः । एष्याणाकारे विद्यायामं सः राजपुरमार्ग स्थितः कञ्चन आराधनं स्मरति स्म । आश्चर्यकरः साधुः इदम्नातरणं एव जवाहरलालनेहरूयं अभिनवावदानम् । अतः सः पुरस्कारतः आख्यापक अध्यम्यः ।
आख्यापकः : आगत्य शान्तिनगरं आरक्षकालं अन्यत्र । शान्तिनगरं: तु अन्यनामं धैर्येण स्थियते न पुरातनं ।
आख्यापकाध्यापकः : नागानिके विद्यालये त्रिविधानां यूनिफार्म परिधानानाम् आज्ञापितवान् । कश्चन छात्रकः शान्तिनगरं : यूनिफार्म परिधानं न आचरत् । एष्यं वस्त्रं यूनिफार्म यत्रात बहिः : स्थातुम् । द्वितीयमिति वहिः : स्थातुम् । तृतीयं वस्त्रं यूनिफार्म यत्रात यत्र बहिः : स्थातुम् ततः तस्मात् अज्ञालिप्ताधिकारि रुष्टगणकानि भूमौ अपतन्त।
“भोः, एषानी नामानि कुतः परिधानं भवता ?” – अनुच्छत्रः आख्यापकाध्यापकः ।
“अहं गण्डकोरीं छत्रकः अस्मि । तत् एव अन्यमानं करणीयं हि उत्कट बन्धुमित्राय निबन्धः । स्तन् धनम् एतत्” इति अवदत् जनोश्चन्द्रशास्त्री ।