(i) जयशंकर प्रसाद — जीवन परिचय और प्रमुख रचना
जन्म और शिक्षा:
जयशंकर प्रसाद का जन्म सन् 1889 ई. में वाराणसी में हुआ। उनका परिवार मूलतः व्यावसायिक था, परंतु प्रसाद जी का झुकाव बाल्यावस्था से ही साहित्य और अध्यात्म की ओर था। पारिवारिक कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने स्वाध्याय द्वारा उच्च स्तर की शिक्षा प्राप्त की।
व्यक्तित्व और योगदान:
प्रसाद जी हिंदी के छायावाद युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। वे केवल कवि ही नहीं, बल्कि नाटककार, कहानीकार और उपन्यासकार भी थे। उनका व्यक्तित्व गम्भीर, चिंतनशील और संवेदनशील था। उन्होंने अपने साहित्य के माध्यम से मानव–जीवन, प्रकृति और दर्शन का सुंदर संगम प्रस्तुत किया।
साहित्यिक योगदान:
उन्होंने हिंदी साहित्य में भाव, भाषा और शैली — तीनों में गहराई और ऊँचाई दी। उनकी कविताओं में दर्शन, प्रेम और राष्ट्र–भक्ति की भावना झलकती है। नाट्य–साहित्य में उन्होंने "चंद्रगुप्त" और "ध्रुवस्वामिनी" जैसे ऐतिहासिक नाटक लिखे जो अत्यंत प्रसिद्ध हैं।
प्रमुख रचना:
उनकी सर्वश्रेष्ठ कृति "कामायनी" है। यह दार्शनिक महाकाव्य मानव–जीवन के तीन तत्त्वों — भावना, बुद्धि और इच्छा — के संघर्ष और समन्वय का प्रतीक है।
निष्कर्ष:
जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य के सर्वांगीण सर्जक और राष्ट्रीय चेतना के प्रतीक कवि थे।
(ii) भगवतशरण उपाध्याय — जीवन परिचय और प्रमुख रचना
जन्म और शिक्षा:
भगवतशरण उपाध्याय का जन्म सन् 1910 ई. में हुआ। उन्होंने इतिहास और संस्कृति का गहन अध्ययन किया। उनकी रुचि पुरातत्त्व, संस्कृति और इतिहास के अध्ययन–लेखन में विशेष थी।
व्यक्तित्व और योगदान:
वे हिंदी साहित्य के विशिष्ट निबंधकार और इतिहासकार थे। उनके लेखन में भारतीय संस्कृति, परंपरा और इतिहास का गहराई से विश्लेषण मिलता है। वे भारतीय संस्कृति को आधुनिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत करने वाले विद्वानों में अग्रणी थे।
साहित्यिक योगदान:
उनकी रचनाओं में प्राचीन ग्रंथों और ऐतिहासिक तथ्यों की व्याख्या अत्यंत सहज और स्पष्ट रूप में की गई है। वे इतिहास को केवल तथ्य न मानकर मानव–संस्कृति का जीवंत साक्ष्य मानते थे।
प्रमुख रचना:
उनकी प्रसिद्ध कृति "रामायण — एक सांस्कृतिक अध्ययन" है, जिसमें उन्होंने रामायण को केवल धार्मिक नहीं बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से विवेचित किया है।
निष्कर्ष:
भगवतशरण उपाध्याय साहित्य और इतिहास को जोड़ने वाले ऐसे लेखक थे जिन्होंने संस्कृति को नए रूप में प्रस्तुत किया।
(iii) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल — जीवन परिचय और प्रमुख रचना
जन्म और शिक्षा:
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का जन्म सन् 1884 ई. में उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में हुआ। उन्होंने संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी का गहन अध्ययन किया। वे काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी के आचार्य रहे।
व्यक्तित्व और योगदान:
वे हिंदी साहित्य के प्रथम वैज्ञानिक आलोचक और इतिहासकार माने जाते हैं। उन्होंने हिंदी साहित्य को लोक–जीवन और समाज से जोड़कर उसकी वास्तविक पहचान कराई। उनका जीवन सादगी, ईमानदारी और अनुशासन से भरा था।
साहित्यिक योगदान:
आचार्य शुक्ल ने हिंदी आलोचना को वैज्ञानिक दृष्टिकोण प्रदान किया। उन्होंने साहित्य को केवल कल्पना नहीं, बल्कि समाज का दर्पण बताया। उनके निबंधों में तार्किकता और प्रमाणिकता का समन्वय मिलता है।
प्रमुख रचना:
उनकी अमर कृति "हिंदी साहित्य का इतिहास" है, जिसमें हिंदी साहित्य का क्रमबद्ध और वैज्ञानिक विवेचन प्रस्तुत किया गया है।
निष्कर्ष:
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हिंदी आलोचना और इतिहास लेखन के युग–प्रवर्तक माने जाते हैं। उन्होंने हिंदी को एक गंभीर अध्ययन–विषय का रूप दिया।