Question:

निम्नलिखित पिठत पद्यांश पढ़कर दी गई सूचनाओं के अनुसार कृितयाँ कीिजए : विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर धूम 
भिक्षु होकर रहते सम्राट, दया दिखलाते घर-घर घूम। 
'यवन' को दिया दया का दान, चीन को मिली धर्म की दृष्टि 
मिला था स्वर्ण भूमि को रत्न, शील की सिंहल को भी सृष्टि। 
किसी का हमने छीना नहीं, प्रकृति का रहा पालना यहीं 
हमारी जन्मभूमि थी यहीं, कहीं से हम आए थे नहीं।...... 
चरित थे पूत, भुजा में शक्ति, नम्रता रही सदा संपन्न 
हृदय के गौरव में था गर्व, किसी को देख न सके विपन्न। 

(3) उपर्युक्त पद्यांश की प्रथम चार पंक्तियों का सरल अर्थ 25 से 30 शब्दों में लिखिए। 
 

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भावार्थ लिखते समय, कविता के मूल भाव को पकड़ें और उसे अपनी सरल भाषा में लिखें। कठिन शब्दों को आसान शब्दों में बदलें और अलंकारिक भाषा को सीधे अर्थ में प्रस्तुत करें।
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Solution and Explanation

Step 1: Understanding the Concept:
हमें पद्यांश की पहली चार पंक्तियों का सरल अर्थ अपने शब्दों में लिखना है।
पंक्तियाँ हैं:
विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर धूम
भिक्षु होकर रहते सम्राट, दया दिखलाते घर-घर घूम।
'यवन' को दिया दया का दान, चीन को मिली धर्म की दृष्टि
मिला था स्वर्ण भूमि को रत्न, शील की सिंहल को भी सृष्टि।

Step 2: Detailed Explanation:
सरल अर्थ:
कवि कहते हैं कि भारत ने केवल शस्त्रों से ही विजय नहीं पाई, बल्कि यहाँ हमेशा धर्म की विजय हुई है। यहाँ अशोक जैसे सम्राटों ने राजपाट त्यागकर भिक्षु बनकर घर-घर दया का संदेश फैलाया। भारत ने यूनानियों को दया का दान दिया और चीन को धर्म की दृष्टि प्रदान की।

Step 3: Final Answer:
कवि जयशंकर प्रसाद जी कहते हैं कि भारत ने शस्त्रों के बल पर नहीं, बल्कि धर्म और प्रेम से दिलों को जीता है। यहाँ सम्राटों ने भी भिक्षु बनकर दया का प्रचार किया तथा यूनान और चीन जैसे देशों को दया और धर्म का संदेश दिया।

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