चरण 1: अरस्तू का बहु-कारण सिद्धान्त।
अरस्तू कारणता को चार कारणों—द्रव्य (material), औपादान/आकारिक (formal), प्रेरक/कर्मकारक (efficient), तथा अंतिम (final)—से समझाता है; वस्तु-निर्माण/परिवर्तन में इनका सहभाग बताता है।
चरण 2: ह्यूम का सन्देहवाद।
डेविड ह्यूम कारणता में आवश्यक सम्बन्ध को अनुभव से असिद्ध मानते हैं; हमें जो मिलता है वह केवल निरन्तर सह-अवस्थिति (constant conjunction) और आदत/अपेक्षा है—इससे कारण-नियतत्व का तर्क आलोचना में आता है।
चरण 3: जे. एस. मिल की आगमन-पद्धति।
मिल कारण-खोज के आगमन नियम देता है—समझौते का नियम, भिन्नता का नियम, सह-अवस्थिति/अवशेष/समन्याय—जिनसे प्रायोगिक रूप से कारण की पहचान की जाती है।
निष्कर्ष:
तीनों दार्शनिक कारणता पर विशिष्ट मत रखते हैं—एक विस्तार (अरस्तू), दूसरा आलोचना (ह्यूम), तीसरा पद्धति (मिल)। अतः सही विकल्प (4) इनमें से सभी।