Question:

अरस्तू ने कारणों की स्वीकृति (विशेषतः द्वैत/सार-रूप बनाम पदार्थ) को क्यों उचित माना?
 

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किसी भी वस्तु को समझें: "यह किससे बनी?" (उपादान) और "यह क्या बनने/करने के लिए है?" (रूप/उद्देश्य)—दोनों देखें।
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Solution and Explanation

Step 1: समस्या.
केवल 'पदार्थ' बताने से पहचान और प्रयोजन स्पष्ट नहीं; केवल 'रूप' बताने से निर्माण और परिवर्तन का हिसाब नहीं बैठता।

Step 2: कारण-सिद्धान्त.
अरस्तू के चार कारण—उपादान (material), रूप (formal), निमित्त (efficient), प्रयोजन (final)—वस्तु के अस्तित्व को बहुपक्षीय रूप से समझाते हैं। कई टीकाएँ रूप-प्रयोजन को एक अक्ष पर और उपादान-निमित्त को दूसरे पर रखकर द्वैत-ढाँचा भी दिखाती हैं।

Step 3: व्याख्यात्मक पर्याप्तता.
द्वैत/समेकित दृष्टि से निर्माण (उपादान/निमित्त) तथा परिपूर्णता/लक्ष्य (रूप/प्रयोजन) दोनों स्पष्ट होते हैं; केवल एक पक्ष लेने से विज्ञान अपूर्ण रह जाता है।

Step 4: निष्कर्ष.
कारण-स्वीकृति अरस्तू की टेलियोलॉजिकल समझ का आधार है, जो वस्तु-परिवर्तन की समग्र व्याख्या देता है।

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