लोकतंत्र की सफलता चार स्तंभों पर टिकी होती है — विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया। मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह जनता और सरकार के बीच सेतु का कार्य करता है।
यह समाज को सूचनाएँ देता है, जनता की आवाज़ को मुखर बनाता है और सत्ता से प्रश्न पूछता है।
जहाँ संसद में बहस होती है, वहीं मीडिया में सार्वजनिक विमर्श होता है।
मीडिया का कार्य केवल सूचना देना नहीं, बल्कि विचार बनाना भी है। एक जागरूक मीडिया समाज में चेतना, विवेक और उत्तरदायित्व का संचार करता है।
वह भ्रष्टाचार, सामाजिक कुरीतियों और अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाता है।
टीवी चैनल, रेडियो, अखबार, ऑनलाइन पोर्टल और सोशल मीडिया — इन सबके माध्यम से आज मीडिया घर-घर तक पहुँच चुका है।
हालांकि, वर्तमान समय में मीडिया पर पक्षपात, झूठी खबरें, टीआरपी की होड़ और राजनीतिक दबाव जैसे गंभीर आरोप भी लगते हैं।
जब मीडिया अपनी निष्पक्षता खो देता है, तो वह ‘चौथा स्तंभ’ नहीं रह जाता, बल्कि लोकतंत्र की नींव को डगमगाने लगता है।
इसलिए ज़रूरी है कि मीडिया न सिर्फ स्वतंत्र हो, बल्कि नैतिक और ज़िम्मेदार भी हो।
एक मजबूत मीडिया ही एक मजबूत लोकतंत्र की पहचान है। जब मीडिया सच के साथ खड़ा होता है, तो वह जनता को सजग नागरिक बनने की प्रेरणा देता है।
अतः मीडिया को सिर्फ व्यवसाय नहीं, जनसेवा का माध्यम मानकर ही वह लोकतंत्र के चौथे स्तंभ की गरिमा को बनाए रख सकता है।