चरण 1: सन्देह की पद्धति।
रेने देकार्त ने ज्ञान की अटल नींव खोजने हेतु विधिवत् सन्देह अपनाया—इन्द्रिय, स्वप्न, यहाँ तक कि गणितीय सत्य तक पर संदेह किया। पर एक तथ्य ऐसा मिला जिस पर सन्देह स्वयं असम्भव है: सन्देह/सोच होने का तथ्य।
चरण 2: 'Cogito' का निष्कर्ष।
यदि मैं सोच रहा हूँ, तो सोचने वाला अवश्य है—मैं। इसलिए सूत्र बनता है: "मैं सोचता हूँ, इसलिए मैं हूँ"। यह मेरे चिन्तनशील आत्मा के अस्तित्व का तात्कालिक और स्वसिद्ध प्रमाण है; इसे देकार्त res cogitans (चिन्तनशील पदार्थ) कहता है। यह निष्कर्ष देह या बाह्य-जगत के अस्तित्व का तात्कालिक प्रमाण नहीं देता, बल्कि आत्मचेतना को ज्ञान की प्रथम निश्चितता ठहराता है।
चरण 3: महत्व और अपवर्जन।
यही देकार्तीय रैशनलिज़्म का प्रारम्भ-बिन्दु बनता है, जिसके बाद वह ईश्वर और जगत के अस्तित्व की दलीलें देता है। कान्ट, ह्यूम और स्पिनोज़ा ने यह सूत्र नहीं दिया; अतः सही उत्तर देकार्त।