Comprehension

मैं कब कहता हूँ जग मेरी दुर्धर गति के अनुकूल बने, मैं कब कहता हूँ जीवन-मरु नंदन कानन का फूल बने ? 
काँटा कठोर है तीखा है, उसमें उसकी मर्यादा है, 
मैं कब कहता हूँ वह घटकर प्रांतर का ओछा फूल बने ? 
मैं कब कहता हूँ मुझे युद्ध में कहीं न तीखी चोट मिले ? 
मैं कब कहता हूँ प्यार करूँ तो मुझे प्राप्ति की ओट मिले ?

Question: 1

उपर्युक्त पद्यांश के पाठ और रचयिता का नाम लिखिए।

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महादेवी वर्मा की रचनाएँ जीवन के विविध पक्षों और संघर्षों का गहरा विश्लेषण करती हैं।
Updated On: Nov 14, 2025
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उपर्युक्त पद्यांश का पाठ 'रचनाएँ' है, जिसे कवि महादेवी वर्मा ने रचित किया है। इस पद्यांश में कवि अपने जीवन के संघर्ष और अद्वितीयता की ओर संकेत कर रहे हैं।
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Question: 2

रेखांकित अंश की व्याख्या कीजिए।

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कवि जीवन में संघर्ष और कठिनाइयों को एक मूल्यवान अनुभव मानते हैं, जो उनके व्यक्तित्व और अस्तित्व को परिपूर्ण करता है।
Updated On: Nov 14, 2025
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Solution and Explanation

रेखांकित अंश में कवि यह कह रहे हैं कि वह कभी यह नहीं चाहते कि उनका जीवन केवल सरल और सुखमय हो, बल्कि वह चाहते हैं कि जीवन के संघर्ष और कठिनाइयाँ उन्हें न केवल परिष्कृत करें, बल्कि उनके व्यक्तित्व को भी मजबूत बनाएं। काँटे की कठोरता और तीखापन उसकी मर्यादा की पहचान हैं, यही सोच वे जीवन के प्रति अपनाते हैं।
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Question: 3

दुर्धर' और 'प्रांतर' शब्द का अर्थ लिखिए।

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'दुर्धर' और 'प्रांतर' दोनों शब्दों में प्रकृति और स्थान की गहरी कठिनाई और विशालता का संकेत मिलता है।
Updated On: Nov 14, 2025
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'दुर्धर' का अर्थ है 'बहुत कठिन' या 'अत्यधिक कठिन', और 'प्रांतर' का अर्थ है 'क्षेत्र' या 'किसी स्थान का विस्तार'।
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Question: 4

जीवन-मरु नंदन कानन का फूल बने' में कौन-सा अलंकार प्रयुक्त है ?

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रूपक अलंकार में किसी वस्तु या विचार को अन्य वस्तु से तुलना करके उसकी विशिष्टता को स्पष्ट किया जाता है।
Updated On: Nov 14, 2025
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इस पंक्ति में 'रूपक अलंकार' प्रयुक्त है। जीवन को मरु-नंदन के फूल से जोड़कर व्यक्त किया गया है, जो जीवन के शुद्ध और निस्वार्थ रूप को प्रदर्शित करता है।
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Question: 5

मैं कब कहता हूँ प्यार करूँ तो मुझे प्राप्ति की ओट मिले ?' – इसका तात्पर्य स्पष्ट कीजिए।

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यह पंक्ति प्रेम की निष्कलंकता और स्वार्थ से परे होने की मानसिकता को दर्शाती है, जहाँ केवल शुद्ध भावनाओं का आदान-प्रदान होता है।
Updated On: Nov 14, 2025
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इस पंक्ति का तात्पर्य यह है कि कवि अपने प्यार में किसी प्रकार की प्राप्ति या स्वार्थ की आशा नहीं रखते। वह केवल प्रेम करने की शुद्ध भावना में विश्वास करते हैं, और चाहते हैं कि प्रेम का कोई लोभ या स्वार्थ न हो।
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