Question:

महादेवी अपने और भक्ति के संबंध को सेवक और स्वामी का संबंध क्यों नहीं मानती थी ? ‘भक्तिन’ पाठ के आधार पर लिखिए।

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भक्ति को केवल बाहरी आचरण नहीं, आत्मिक संबंध के रूप में समझें।
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Solution and Explanation

‘भक्तिन’ पाठ में महादेवी वर्मा का यह विचार उभरकर सामने आता है कि भक्ति केवल सेवक और स्वामी का यांत्रिक संबंध नहीं है। वह भक्ति को हृदय का आत्मिक सौंपा हुआ भाव मानती हैं, जिसमें आज्ञा और पालन की अपेक्षा प्रेम और आत्मीयता होती है।
सेवक-स्वामी का संबंध बाहरी नियमों, अनुशासन और सत्ता पर आधारित होता है, जबकि महादेवी की भक्ति एक आत्मीय जुड़ाव है, जिसमें समर्पण, आत्मचिंतन और भावनात्मक एकता है।
महादेवी वर्मा मानती हैं कि भक्त और ईश्वर के संबंध में अधिकार, कर्तव्य और भय की भावना नहीं, बल्कि मित्रता और एकात्मता होनी चाहिए। यही कारण है कि वह अपनी भक्तिन को केवल भगवान की आज्ञाकारिणी नहीं मानतीं, बल्कि एक ऐसी आत्मा के रूप में देखती हैं जो परमात्मा के साथ अपने अंतर्मन से जुड़ी है।
निष्कर्ष: भक्ति का उद्देश्य केवल सेवा नहीं, बल्कि आत्म-उन्नयन और भावनात्मक एकत्व है। महादेवी का यह दृष्टिकोण भक्ति को एक नया, गहराई भरा आयाम देता है।
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