क्या शंकर के अनुसार जगत असत्य है?
Step 1: सत्य-त्रिविध.
अद्वैत में परमार्थिक (ब्रह्म), व्यावहारिक (जगत/जीव/ईश्वर), और प्रातिभासिक (स्वप्न/भ्रम) सत्य-स्तर बताए गए।
Step 2: मिथ्यात्व.
मिथ्या = नित्य-परमार्थ-सत्य भी नहीं, पूर्ण असत् भी नहीं; कारण के ज्ञान से जिसका नाश हो—रज्जु–सर्प दृष्टान्त।
Step 3: माया और नाम-रूप.
माया अनादि अविद्या-शक्ति है; ब्रह्म पर नाम–रूप आरोप से जगत-बहुलता दिखती है। ब्रह्म–आत्मा सदैव अभिन्न; भेद अविद्या-कल्पित।
Step 4: ज्ञान-मुक्ति.
शास्त्र–गुरु–विचार से आत्मज्ञान होते ही मिथ्यात्व का भेदन—"तत्त्वमसि"—और जीव ब्रह्म के अद्वैत स्वरूप का साक्षात्कार करता है।
Step 5: निष्कर्ष.
इसलिए "जगत असत्य" कहना सरल पर गलत; सही कथन—जगत मिथ्या है, ब्रह्म सत्य है।
अद्वैत वेदान्त के अनुसार 'जगत' की सत्ता क्या है?
निम्न में से कौन-सी वेदान्त की शाखा नहीं है?
शंकर के अनुसार निर्विशेषतः चेतन सत्ता कौन है?
शंकर के दर्शन के अनुसार पारमार्थिक सत्ता क्या है ?
रामानुजाचार्य ने किस दर्शन को प्रतिपादित किया है ?