Question:

“कोई साथ नहीं होता है। जब मृत्यु के क्षण पास आते हैं तो प्रिये मित्र भी भुला देते हैं, 
कोई निमंत्रण दिया गया तो भय के मारे उपस्थित नहीं हो जाता, 
नीति और धर्म की बातें तो दूर, मित्रता का धर्म भी छूट जाता है।”
 

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यह गद्यांश जीवन की सच्चाइयों को उजागर करते हुए हमें आत्मनिर्भर बनने की शिक्षा देता है। मृत्यु के भय से ऊपर उठना ही सच्चा साहस है।
Updated On: Jul 18, 2025
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Solution and Explanation

यह गद्यांश जीवन के अंतिम सत्य — मृत्यु — और उससे जुड़ी मानवीय संवेदनाओं एवं व्यवहारों का यथार्थ चित्रण करता है।
लेखक बताता है कि जब जीवन की अंतिम घड़ी आती है, तब इंसान को अकेलापन ही नसीब होता है।
जो लोग जीवन भर साथ रहते हैं, मित्रता की कसमें खाते हैं, वही लोग मृत्यु के क्षणों में भयवश दूर हो जाते हैं।
यहां ‘मित्रता का धर्म’ छूटने की बात विशेष रूप से गहरी है — यह दर्शाता है कि समाज में रिश्तों की वास्तविकता बहुत बार केवल औपचारिकता रह जाती है।
मृत्यु का भय इतना बड़ा होता है कि लोग अपने करीबी मित्रों की अंतिम घड़ी में भी साथ देने से कतराते हैं।
इस गद्यांश का उद्देश्य यह बताना है कि जीवन में जिन चीज़ों को हम सबसे स्थायी मानते हैं, जैसे मित्रता, साथ, सहयोग — वे भी मृत्यु के समय बेमानी हो जाती हैं।
यहां लेखक मानवीय व्यवहार की उस सच्चाई को उद्घाटित करता है जहाँ नीतियों, सिद्धांतों और वादों की असलियत सामने आती है।
मृत्यु के क्षणों में व्यक्ति का आत्मबल ही उसका सबसे बड़ा साथी होता है।
सांत्वना देने वाले लोग, मित्र, परिवार — सब सीमित हो जाते हैं।
वही व्यक्ति मजबूत होता है जो इस सच्चाई को पहले ही स्वीकार कर लेता है और जीवन को आत्मनिर्भरता से जीता है।
यह गद्यांश हमें मानसिक, भावनात्मक और आत्मिक रूप से तैयार रहने की प्रेरणा देता है।
लेखक यह संकेत करता है कि मित्रता, धर्म, नीति — सब व्यावहारिकता की कसौटी पर अंतिम समय में विफल हो जाते हैं, इसलिए आत्मबल सबसे बड़ा सहारा है।
वास्तविक विजेता वही होता है जो अंत तक अपने विचारों और आत्मबल पर अडिग रहता है।
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