कारण के स्वरूप की व्याख्या करें।
Step 1: अवधारणा.
कारण (कारणम्) को वह तत्त्व कहा जाता है जिससे कार्य उत्पन्न हो तथा जिसके न रहते कार्य भी न रहे। न्याय इसकी आवश्यक शर्तें—पूर्ववृत्ति, नियत सम्बन्ध, तथा उत्पादनशीलता—बताता है।
Step 2: प्रकार.
(क) समवायी—जो कार्य में अविभक्त होकर निहित रहता है; जैसे कुम्भ में मृत्तिका। (ख) असमवायी—जो कार्य में समवायी के माध्यम से सम्बन्ध रखता है; जैसे मृत्तिका का गुण। (ग) निमित्त—उत्पादन करने वाला साधक/कर्ता; जैसे कुम्भकार, चक्र आदि।
Step 3: अन्य परम्पराएँ.
वेदान्त ब्रह्म को ही उपादान–निमित्त दोनों मानता है; सांख्य में प्रकृति उपादान, पुरुष साक्षी—निमित्त नहीं। बौद्ध में क्षणिक–क्षेत्र में ही हेतु–प्रत्यय की शृंखला है।
Step 4: निष्कर्ष.
कारण-मीमांसा कार्य-व्याख्या का आधार है; इससे वैज्ञानिक नियमन (नियमबद्धता) और दार्शनिक उत्तरदायित्व (नैतिक–कर्मफल) दोनों स्पष्ट होते हैं।
कारणता सिद्धान्त है
अरस्तू के अनुसार कारण है—
मिल के अनुसार कारण है—
निम्न में से कौन कारणता के सिद्धान्त से सम्बन्धित है ?
जड़ में गति प्रदान करने वाली शक्ति को क्या कहते हैं ?
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