Question:

“झोंपड़े की आग ईर्ष्या की आग की भाँति कभी नहीं बुझती।” ‘सूरदास की झोंपड़ी’ पाठ में किसकी ईर्ष्या का उल्लेख किया गया है? ईर्ष्या का कारण क्या है? क्या आपको लगता है कि वह कारण सहज, स्वाभाविक और मानवीय है? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए। 
 

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ईर्ष्या जैसे भाव मानवीय हैं, लेकिन सामाजिक दृष्टि से वे विनाशकारी होते हैं — यह भलीभांति रेखांकित करें।
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Solution and Explanation

पाठ में सूरदास की झोंपड़ी जल जाने के पीछे ठाकुर के मन की ईर्ष्या दिखाई गई है। ठाकुर को यह सहन नहीं हुआ कि एक अंधा भिक्षुक (सूरदास) ग्रामवासियों के आदर और श्रद्धा का पात्र बन गया है।
सूरदास की झोंपड़ी उसकी आत्मनिर्भरता और सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गई थी। यही ईर्ष्या का कारण बना।
यह कारण स्वाभाविक और मानवीय तो है क्योंकि मनुष्य कभी-कभी अपनी तुलना दूसरों से करता है और असुरक्षा की भावना में जलता है, परंतु यह उचित नहीं ठहराया जा सकता।
ठाकुर का व्यवहार दर्शाता है कि जब व्यक्ति में दंभ और सत्ता का मद होता है, तो वह सामान्य सी बातें भी सहन नहीं कर पाता।
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