(i) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल — जीवन परिचय, साहित्य-व्यक्तित्व और प्रमुख रचना
जन्म–परिचय एवं शिक्षा:
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (1884–1941) का जन्म उत्तर प्रदेश के उस समय के बस्ती जनपद में हुआ। आरम्भिक शिक्षा के साथ ही अंग्रेजी और संस्कृत–हिंदी साहित्य में उनकी रुचि विकसित हुई। बाद में वे काशी (वाराणसी) आए और नागरी प्रचारिणी सभा तथा बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से जुड़े।
स्वभाव और दृष्टि:
शुक्ल जी का स्वभाव अत्यन्त अनुशासित, स्पष्टवक्ता और शोधप्रिय था। उन्होंने साहित्य को केवल सौन्दर्य–रस के उपभोग तक सीमित न मानकर उसे समाज और जीवन से प्रत्यक्ष रूप से जोड़ने की बात कही। उनकी आलोचना–दृष्टि इतिहास–सापेक्ष, वैज्ञानिक और समाजोन्मुख है। वे लोकमंगल की स्थापना को साहित्य का लक्ष्य मानते हैं।
साहित्य–योगदान:
(1) हिंदी आलोचना में वैज्ञानिक पद्धति का बोध।
(2) इतिहास–लेखन की सुव्यवस्थित परम्परा।
(3) निबंध–लेखन को उच्च वैचारिक गरिमा।
(4) लोक–जीवन का आग्रह।
मुख्य रचनाएँ:
हिंदी साहित्य का इतिहास, चिंतामणि (भाग 1–2), तुलसीदास, सूरदास, कबीर पर आलोचनात्मक निबंध।
प्रमुख रचना—हिंदी साहित्य का इतिहास:
यह ग्रन्थ हिंदी के प्राचीन से आधुनिक काल तक के साहित्य का पहला सुसंगत और वैज्ञानिक इतिहास है। इसमें भाषा–विकास, काव्य–धाराएँ, कवियों का समाज–सापेक्ष मूल्यांकन किया गया है।
उपसंहार:
शुक्ल जी हिंदी आलोचना के शिल्पी और आधुनिक साहित्य–इतिहास के जनक हैं।
(ii) जयशंकर प्रसाद — जीवन परिचय, साहित्य–दृष्टि और प्रमुख रचना
जन्म–परिचय एवं परिवेश:
जयशंकर प्रसाद (1889–1937) का जन्म वाराणसी में हुआ। समृद्ध परिवार में जन्म के बावजूद युवावस्था में कठिनाइयाँ आईं।
छायावाद के स्तम्भ:
प्रसाद जी छायावाद के चार स्तम्भों में से एक हैं। उनकी रचनाओं में भावुकता, प्रकृति–चित्रण, राष्ट्रप्रेम और दर्शन का अद्भुत मेल मिलता है।
साहित्य–योगदान:
काव्य—आँसू, लहर, झरना, कामायनी।
नाटक—स्कन्दगुप्त, चन्द्रगुप्त, अजातशत्रु, ध्रुवस्वामिनी।
कहानियाँ/उपन्यास—आधुनिक संवेदना का चित्रण।
प्रमुख रचना—कामायनी:
कामायनी हिंदी का महाकाव्य है। इसमें मनु, श्रद्धा और इड़ा के माध्यम से मानव–मन के भाव, बुद्धि और इच्छा का संतुलन दिखाया गया है। यह कृति दार्शनिक गहराई, प्रतीकात्मकता और काव्य सौन्दर्य से परिपूर्ण है।
उपसंहार:
प्रसाद जी की सर्जना सौन्दर्य और राष्ट्र–चेतना का अद्भुत संगम है।
(iii) डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद — जीवन परिचय, राष्ट्रीय भूमिका और प्रमुख कृति
जन्म–परिचय और शिक्षा:
डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद (1884–1963) का जन्म बिहार के जिरादेई गाँव में हुआ। वे अत्यन्त मेधावी छात्र थे और कानून में दक्षता प्राप्त की।
राष्ट्रीय जीवन में योगदान:
गांधी जी के नेतृत्व में स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय रहे। वे संविधान सभा के अध्यक्ष और स्वतन्त्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने।
स्वभाव और व्यक्तित्व:
सादगी, विनम्रता, सेवा–भाव और अनुशासन उनके जीवन के मुख्य मूल्य थे। उन्हें जनता का राष्ट्रपति कहा जाता है।
प्रमुख कृतियाँ:
आत्मकथा, इंडिया डिवाइडेड, बापू के कदमों में।
प्रमुख रचना—आत्मकथा:
इसमें उनके बचपन, शिक्षा, राष्ट्रीय आन्दोलन में भागीदारी और राष्ट्रपति बनने तक की घटनाओं का सरल और सत्यनिष्ठ वर्णन है। यह आधुनिक भारत के इतिहास का जीवंत दस्तावेज है।
उपसंहार:
डॉ॰ राजेन्द्र प्रसाद भारतीय लोकतन्त्र और आदर्श नेतृत्व के प्रतीक थे।