Given:
Capital of Daya = ₹5,00,000
Capital of Deena = ₹6,00,000
Interest on capital = 12% p.a.
Profit-sharing ratio = 3 : 1
Case (i): Profit = ₹2,00,000
Interest on Daya’s capital = $5,00,000 \times 12\% = ₹60,000$
Interest on Deena’s capital = $6,00,000 \times 12\% = ₹72,000$
Total Interest on Capital = ₹60,000 + ₹72,000 = ₹1,32,000
Since profit (₹2,00,000) is greater than total interest (₹1,32,000), full interest can be paid.
Distribution:
- Daya gets ₹60,000
- Deena gets ₹72,000
Balance profit = ₹2,00,000 – ₹1,32,000 = ₹68,000
Divide remaining profit in 3 : 1 → Total parts = 4
- Daya = $₹68,000 \times \dfrac{3}{4} = ₹51,000$
- Deena = $₹68,000 \times \dfrac{1}{4} = ₹17,000$
Final distribution:
- Daya = ₹60,000 + ₹51,000 = ₹1,11,000
- Deena = ₹72,000 + ₹17,000 = ₹89,000
Case (ii): Profit = ₹66,000
Total interest required = ₹1,32,000
Since profit is less than interest payable, it is distributed in ratio of interest on capital:
$60,000 : 72,000 = 5 : 6$
Total parts = 11
Distribution:
- Daya = $₹66,000 \times \dfrac{5}{11} = ₹30,000$
- Deena = $₹66,000 \times \dfrac{6}{11} = ₹36,000$
In this case, no further profit is available beyond interest.
‘सदानीरा नदियाँ अब माताओं के गालों के आँसू भी नहीं बहा सकतीं’ कथन के संदर्भ में लिखिए देश के अन्य हिस्सों में नदियों की क्या स्थिति है और इसके क्या कारण हैं?
‘बिस्कोहर की माटी’ पाठ के आधार पर बिस्कोहर में होने वाली वर्गों का वर्णन कीजिए, साथ ही गाँव वालों को उनके बारे में होने वाली किन भ्रांतियों का उल्लेख कीजिए।
‘सूरदास की झोपड़ी’ पाठ सूरदास जैसे लाचार और बेबस व्यक्ति की जिजीविषा एवं उसके संघर्ष का अनूठा चित्रण है। सिद्ध कीजिए।
जो समझता है कि वह दूसरों का उपकार कर रहा है वह अभोला है, जो समझता है कि वह दूसरे का उपकार कर रहे हैं वह मूर्ख है।
उपकार न किसी ने किया है, न किसी पर किया जा सकता है।
मूल बात यह है कि मनुष्य जीता है, केवल जीने के लिए।
आपने इच्छा से कर्म, इतिहास-विज्ञान की योजना के अनुसार, किसी को उससे सुख मिल जाए, यही सौभाग्य है।
इसलिए यदि किसी को आपके जीवन से कुछ लाभ पहुँचा हो तो उसका अहंकार नहीं, आनन्द और विनय से तितलें उड़ाइए।
दुख और सुख तो मन के विकल्प हैं।
सुखी वह है जिसका मन मरा नहीं है, दुखी वह है जिसका मन पस्त है।
ये लोग आधुनिक भारत के नए ‘शरणार्थी’ हैं, जिन्हें औद्योगीकरण के झंझावात ने अपने घर-ज़मीन से
उखाड़कर हमेशा के लिए विस्थापित कर दिया है।
प्रकृति और इतिहास के बीच यह गहरा अंतर है।
बाढ़ या भूकंप के कारण जो लोग एक बार अपने स्थान से बाहर निकलते हैं, वे जब स्थिति टलती है तो वे दोबारा अपने
जन्म-भूमीय परिवेश में लौट भी आते हैं।
किन्तु विकास और प्रगति के नाम पर जब इतिहास लोगों को जड़मूल सहित उखाड़ता है, तो वे अपनी ज़मीन पर
वापस नहीं लौट पाते।
उनका विस्थापन एक स्थायी विस्थापन बन जाता है।
ऐसे लोग न सिर्फ भौगोलिक रूप से बल्कि मानसिक रूप से भी नहीं उखड़ते, बल्कि उसका सामाजिक और
आवासीय स्तर भी हमेशा के लिए नष्ट हो जाते हैं।