भारतीय दर्शन में 'कर्म सिद्धान्त' के अर्थ को स्पष्ट करें।
Step 1: नियमात्मकता.
कर्म का फल अपरिहार्य—यह नैतिक–आध्यात्मिक causal law है; अदृष्ट/अपूर्व की धारणाएँ क्रिया–फल सेतु समझाती हैं।
Step 2: कर्म-त्रय.
संचित (संग्रहीत), प्रारब्ध (फलित, इस जन्म में भोग्य), क्रियमाण (वर्तमान सृजित)—ये मिलकर जीवन-प्रवाह रचते हैं।
Step 3: मुक्ति-मार्ग.
निष्काम कर्म से नए संस्कार पतले; ज्ञान से अहंता–ममता छूटे; भक्ति से समर्पण; योग से चित्त-शुद्धि—बंधन क्षीण होकर मोक्ष।
Step 4: सामाजिक अर्थ.
कर्म-सिद्धान्त व्यक्ति को उत्तरदायी बनाता है; न्याय-भाव, करुणा, और दीर्घकालिक दृष्टि का संवर्धन करता है।
अद्वैत वेदान्त के अनुसार 'जगत' की सत्ता क्या है?
निम्न में से कौन-सी वेदान्त की शाखा नहीं है?
शंकर के अनुसार निर्विशेषतः चेतन सत्ता कौन है?
शंकर के दर्शन के अनुसार पारमार्थिक सत्ता क्या है ?
रामानुजाचार्य ने किस दर्शन को प्रतिपादित किया है ?