Question:

'बेरोज़गारी' क्या है?

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बेरोज़गारी को कम करने के लिए कौशल विकास, शैक्षिक अवसरों का विस्तार और रोजगार सृजन योजनाओं की आवश्यकता होती है।
  • रोजगार की कमी
  • रोजगार का विस्तार
  • रोजगार के अवसर
  • रोजगार से संबंधित कोई समस्या नहीं
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The Correct Option is A

Solution and Explanation

बेरोज़गारी उस स्थिति को कहा जाता है जिसमें लोग कार्य करने के इच्छुक होते हैं, लेकिन उन्हें रोजगार प्राप्त नहीं होता है। यह एक गंभीर आर्थिक समस्या है, जो न केवल व्यक्तिगत स्तर पर असंतोष और तनाव का कारण बनती है, बल्कि समाज और अर्थव्यवस्था पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती है। बेरोज़गारी से उत्पन्न होने वाली समस्याएँ जैसे गरीबी, अपराध, और सामाजिक असमानता, समाज के विकास को बाधित कर सकती हैं। बेरोज़गारी के कई प्रकार होते हैं, जिनमें प्रमुख रूप से निम्नलिखित प्रकार शामिल हैं:
संरचनात्मक बेरोज़गारी (Structural Unemployment): यह तब होती है जब एक व्यक्ति के कौशल और अनुभव बाजार की आवश्यकताओं से मेल नहीं खाते। यह बेरोज़गारी तब उत्पन्न होती है जब उद्योग या तकनीक में परिवर्तन होते हैं, और पुराने कौशल अब काम नहीं आते। उदाहरण के तौर पर, अगर किसी उद्योग में स्वचालन (automation) की प्रक्रिया शुरू होती है, तो उसमें काम करने वाले मजदूरों को नई तकनीक को अपनाने के लिए प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है, यदि वे इसे नहीं कर पाते तो वे बेरोज़गार हो जाते हैं।
सांस्कृतिक बेरोज़गारी (Cultural Unemployment): यह बेरोज़गारी समाज की सांस्कृतिक या सामाजिक धारा से उत्पन्न होती है। जब किसी समाज में कुछ पारंपरिक रोजगार के तरीकों को लेकर पूर्वाग्रह होते हैं, तो समाज के कुछ वर्ग रोजगार पाने में असमर्थ हो सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, कुछ समाजों में महिलाओं को कुछ प्रकार के रोजगार के लिए नहीं माना जाता, जिससे वे बेरोज़गार रह सकती हैं।
मौसमी बेरोज़गारी (Seasonal Unemployment): यह बेरोज़गारी मौसम के बदलाव के कारण उत्पन्न होती है। ऐसे उद्योग, जैसे कृषि, पर्यटन, और निर्माण, जिनका काम मौसम पर निर्भर करता है, उनके श्रमिकों को किसी विशेष मौसम में काम नहीं मिल पाता। उदाहरण के लिए, कृषि के मौसम में खेतों में काम करने वाले श्रमिकों को मानसून के बाद बेरोज़गारी का सामना करना पड़ता है, जब तक कि नई फसल की बुवाई नहीं होती।
साइक्लिकल बेरोज़गारी (Cyclical Unemployment): यह बेरोज़गारी आर्थिक चक्रों के कारण होती है, जब अर्थव्यवस्था मंदी (recession) के दौर से गुजर रही होती है। इस दौरान कंपनियां अपनी उत्पादन क्षमता को घटा देती हैं और कामकाजी घंटों में कटौती कर देती हैं, जिससे श्रमिकों को बेरोज़गारी का सामना करना पड़ता है।
फ्रिक्शनल बेरोज़गारी (Frictional Unemployment): यह तब होती है जब कोई व्यक्ति अपनी नौकरी बदल रहा होता है या नए रोजगार की तलाश में होता है। यह बेरोज़गारी आमतौर पर अस्थायी होती है और इसके अंतर्गत नौकरी ढूंढने के दौरान का समय शामिल होता है। बेरोज़गारी के परिणामस्वरूप न केवल व्यक्तिगत जीवन प्रभावित होता है, बल्कि यह समाज के समग्र विकास और आर्थिक प्रगति को भी बाधित करता है। बेरोज़गारी के उच्च स्तर से सामाजिक असंतोष, अपराध की दर में वृद्धि, और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। इसके समाधान के लिए सरकारें और संगठन नई नौकरियों के अवसरों का सृजन करने, कौशल विकास कार्यक्रमों का आयोजन करने, और सामाजिक और आर्थिक असमानताओं को कम करने के उपाय करती हैं। इस प्रकार, बेरोज़गारी एक जटिल समस्या है जिसे समाज और अर्थव्यवस्था के विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखते हुए हल करने की आवश्यकता है।
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