चरण 1: न्याय।
न्याय दर्शन चार प्रमाण मानता है—प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शब्द—और अनुमान को व्याप्ति-स्मृति पर आधारित वैध ज्ञान-मार्ग मानकर उसकी पञ्चावयवी प्रक्रिया (प्रतिज्ञा, हेतुः, उदाहरण, उपनय, निगमन) स्पष्ट करता है।
चरण 2: सांख्य।
सांख्य दर्शन तीन प्रमाण स्वीकार करता है—प्रत्यक्ष, अनुमान और शब्द। प्रकृति–पुरुष भेद जैसे सूक्ष्म तत्त्वों तक पहुँचने के लिए अनुमान को आवश्यक मानता है, क्योंकि वे इन्द्रिय-प्रत्यक्ष से परे हैं।
चरण 3: बौद्ध।
बौद्ध तर्क परम्परा (विशेषतः दिङ्नाग–धर्मकीर्ति) दो प्रमाण मानती है—प्रत्यक्ष और अनुमान। यहाँ अनुमान लिङ्ग–लिङ्गि सम्बन्ध/व्याप्ति पर टिका होता है और इन्द्रियातीत सत्य (धर्म-क्षणभंगुरता, प्रतीत्यसमुत्पाद) तक तर्कसंगत पहुँच देता है।
निष्कर्ष:
तीनों दर्शनों में अनुमान को प्रमाण माना गया है; इसलिए सही उत्तर "इनमें से सभी" है।