Question:

िनम्‍निलिखत पिठत पद् द्य ांश पढ़कर दी गई सू चनाओं के अनुसार कृितयाँ कीिजए : विजय केवल लोहे की नहीं, धर्म की रही धरा पर धूम 
भिक्षु होकर रहते सम्राट, दया दिखलाते घर-घर घूम। 
'यवन' को दिया दया का दान, चीन को मिली धर्म की दृष्टि 
मिला था स्वर्ण भूमि को रत्न, शील की सिंहल को भी सृष्टि। 
किसी का हमने छीना नहीं, प्रकृति का रहा पालना यहीं 
हमारी जन्मभूमि थी यहीं, कहीं से हम आए थे नहीं।...... 
चरित थे पूत, भुजा में शक्ति, नम्रता रही सदा संपन्न 
हृदय के गौरव में था गर्व, किसी को देख न सके विपन्न। 
(1) कृति पूर्ण कीजिए :

 


 

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कृति पूर्ण करने वाले प्रश्नों के लिए, पद्यांश की संबंधित पंक्तियों को ध्यान से पढ़ें और पूछे गए क्रम में ही जानकारी भरें।
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Solution and Explanation

Step 1: Understanding the Concept: 
यह कृति पद्यांश की अंतिम दो पंक्तियों पर आधारित है। हमें इन पंक्तियों में वर्णित भारतीयों के गुणों को पहचान कर प्रवाह तालिका को पूरा करना है। 
 

Step 2: Detailed Explanation: 
पद्यांश की अंतिम दो पंक्तियाँ हैं: 
"चरित थे पूत, भुजा में शक्ति, नम्रता रही सदा संपन्न 
हृदय के गौरव में था गर्व, किसी को देख न सके विपन्न।" 
इन पंक्तियों से हमें कृति के लिए आवश्यक शब्द मिल जाते हैं। 
 

Step 3: Final Answer: 
पूर्ण कृति इस प्रकार है: 
चरित थे \(\rightarrow\) \(\boxed{\text{पूत}}\) \(\rightarrow\) भुजा में \(\rightarrow\) \(\boxed{\text{शक्ति}}\) \(\rightarrow\) नम्रता रही \(\rightarrow\) \(\boxed{\text{सदा संपन्न}}\) \(\rightarrow\) हृदय के गौरव में \(\rightarrow\) \(\boxed{\text{था गर्व}}\)
 

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