सामने टिकते नहीं वनराज, पर्वत डोलते हैं, काँपता है कुंडली मारे समय का व्याल, मेरी बाँह में मारुत, गरुड़, गजराज का बल है मर्त्य मानब की विजय का तूर्य हूँ मैं, उर्वशी ! अपने समय का सूर्य हूँ मैं । अंध तम के भाल पर पावक जलाता हूँ बादलों के सीस पर स्यंदन चलाता हूँ ।