वैशेषिक के अभाव पदार्थ की व्याख्या करें।
Step 1: आवश्यकता.
दैनिक अनुभूति में 'न होना' उतना ही अर्थपूर्ण है जितना 'होना'; अतः वैशेषिक ने इसे स्वतन्त्र पदर्थ के रूप में संगृहीत किया, जिससे निषेध-वाक्य और नाश/उत्पत्ति की व्याख्या सम्भव हो।
Step 2: भेद.
(क) प्रागभाव—घट बनने से पहले उसका अभाव; (ख) ध्वंसाभाव—घट टूटने के बाद; (ग) अत्यन्ताभाव—'आकाश की सुवास' जैसा असम्भव; (घ) अन्योन्याभाव—घट-पट का परस्पर-अभिन्न न होना।
Step 3: ज्ञान का प्रकार.
विषय-स्थान को देखकर "घट नहीं है"—यह इन्द्रिय-प्रत्यक्ष समर्थित निषेध-ज्ञान है; कभी-कभी व्यवस्थित अनुमान से भी न होने का निष्कर्ष निकाला जाता है।
Step 4: परिणाम.
अभाव-स्वीकृति से नकारात्मक संदर्भ वैध बनते हैं, तर्कशास्त्र में निषेध-प्रतिज्ञाएँ व्यवस्थित होती हैं और कारण-कार्य की सीमा-रेखाएँ स्पष्ट।
योग दर्शन में 'चित्तवृत्ति निरोध' को क्या कहते हैं?
निम्नलिखित में से कौन-सा एक पारार्थानुमान का घटक नहीं है?
वैशेषिक दर्शन का दूसरा नाम क्या है?
कितने पदार्थों को वैशेषिक स्वीकार करता है?
'तत्त्वचिन्तामणि' पुस्तक के लेखक कौन हैं?