Question:

‘उर्दू कानों में हम लोगों की बोली कुछ अनोखी लगती’ – पंक्ति के द्वारा लेखक रामचंद्र शुक्ल तत्कालीन भाषिक समाज की किस विशेषता पर टिप्पणी कर रहे थे ? हिंदी और उर्दू के संबंध पर आपकी क्या राय है ?

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हिंदी और उर्दू को एक-दूसरे से जोड़कर देखना चाहिए, क्योंकि दोनों भाषाओं का समान सांस्कृतिक और साहित्यिक इतिहास है।
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Solution and Explanation

लेखक रामचंद्र शुक्ल की यह पंक्ति तत्कालीन भारतीय समाज में हिंदी और उर्दू के बीच की भाषिक भिन्नताओं और सामाजिक दृष्टिकोण की ओर इशारा करती है। उस समय उर्दू और हिंदी के बीच एक दीवार खड़ी हो चुकी थी, जहाँ दोनों भाषाएँ एक-दूसरे से अलग मानी जाती थीं। शुक्ल जी यह बताने की कोशिश कर रहे थे कि जब उर्दू बोलने वाले लोग हिंदी बोलते हैं, तो उनकी बोली कुछ ‘अनोखी’ सी लगती है, यानी एक अलग पहचान या अनभिज्ञता महसूस होती है। यह पंक्ति उस सामाजिक विभाजन को दिखाती है, जहाँ हर भाषा और बोली को एक सामाजिक स्थिति या पहचान से जोड़ा जाता है।
हिंदी और उर्दू दोनों ही भाषाएँ भारतीय समाज की सांस्कृतिक धरोहर हैं, और इन्हें एक दूसरे से अलग करके देखना बिल्कुल गलत है। उर्दू और हिंदी दोनों का विकास एक ही भूमि से हुआ है और दोनों में बहुत समानताएँ हैं। हमारी संस्कृति में, दोनों भाषाओं का समृद्ध इतिहास और साहित्य है, जो समाज की अनेकता और विविधता को दर्शाता है।
मेरी राय में, दोनों भाषाओं को एक-दूसरे से जोड़कर देखना चाहिए क्योंकि इन दोनों में बहुत अधिक सांस्कृतिक और भाषिक समानताएँ हैं। भाषा न केवल संवाद का माध्यम है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक धरोहर भी है जो समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती है। यदि हम हिंदी और उर्दू को एक-दूसरे से अलग करके देखेंगे तो हम अपनी सांस्कृतिक एकता को नुकसान पहुँचाएंगे।
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