स्तर:
प्राथमिक—माता-पिता/भाई-बहन/पति-पत्नी/संतान; माध्यमिक—दादा-दादी/मामा-मौसी/ससुराल आदि। तृतीयक—इन्हीं से आगे की विस्तृत कड़ियाँ (''इन-लॉ ऑफ इन-लॉ'' प्रकार)।
महत्त्व:
शादी-ब्याह, सामाजिक सहयोग, सूचना/रोज़गार नेटवर्क और अनुष्ठानों में इनका सहयोग मिलता है; ग्रामीण समाज में प्रभाव अधिक, शहरी में अवसर-आधारित।
विशेषता:
निकट रिश्तों जितनी कानूनी/आर्थिक बाध्यता नहीं पर सामाजिक पूँजी हेतु उपयोगी नेटवर्क बनाते हैं।