Question:

‘सिंधु घाटी सभ्यता और संस्कृति का सामान भले ही अजयघरों की शोभा बढ़ा रहा हो, शहर जहाँ था अब भी वहीं है।’ — इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए। 
 

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जब कोई कथन प्रतीकात्मक या व्यंग्यात्मक हो, तो उसमें प्रयुक्त रूपकों (metaphors) और समाज-चिंतन का गहराई से विश्लेषण करें।
Updated On: Jul 30, 2025
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Solution and Explanation

यह कथन आधुनिक समाज की सांस्कृतिक विडंबना और सामाजिक ठहराव को उजागर करता है। सिंधु घाटी सभ्यता की भौतिक वस्तुएँ आज संग्रहालयों और अमीरों के 'अजयघरों' की शोभा बनी हुई हैं। ये वस्तुएँ इतिहास की गौरवशाली धरोहर हैं, जिन्हें आधुनिक समाज ने 'सजावट' के रूप में अपनाया है, लेकिन उनके मूल जीवन-मूल्यों, सामाजिक समता और प्राचीन ज्ञान को विस्मृत कर दिया है।
“शहर जहाँ था अब भी वहीं है” — यह वाक्य गहरे रूपक के रूप में प्रयोग हुआ है। इसका अर्थ यह है कि भले ही हम तकनीकी, संरचनात्मक या बाह्य रूप से आगे बढ़े हों, परंतु मानवीय चेतना, सामाजिक समानता, सांस्कृतिक जागरूकता जैसी बुनियादी बातें वहीं रुकी हुई हैं जहाँ प्राचीन सभ्यता पीछे छूटी थी।
यह कथन एक प्रकार की सामाजिक आलोचना है — जिसमें कहा गया है कि हमने अतीत की भौतिक वस्तुओं को तो सहेजा, परंतु उसकी चेतना, दृष्टि और जीवन-दर्शन को नहीं अपनाया।
अतः यह कथन आधुनिक समाज की खोखली प्रगति और मूल्यों की अवहेलना की तीव्र व्यंग्यात्मक अभिव्यक्ति है।
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